SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 439
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०४ नवतत्त्वसंग्रहः अनं०पज्जत्तगा ४ ए चार उद्देशे एक सरीषे है. एवं सर्व उद्देशो १० हूये. अथ अचरमना ११ मा उद्देशा लिख्यते-मनुष्य वर्जी २३ दंडके आयु वर्जी पापकर्म आदि ८ आश्री सर्व बोला मे १।२ भांगा. आयु आश्री नरक १, तिर्यंच २, देव ३ मे ११३ भंग मिश्रदृष्टिमे भंग ३ तीजा. पृथ्वी १, अप २, वनस्पति ३, तेजोलेश्यीमे ३ तीजा भंग. विगलेंद्रीमे ११३ भंग सम्यक्त्व १, ज्ञान आदि ३ ए ४ मे ३ तीजा भंग, मनुष्य अचरममे अलेश्यी १, केवली २, अयोगी ३ ए ३ नही, शेष बोल ४३ मे जहां चौथा भंग है सो नही कहना और सर्व प्रथम उद्देशवत् इति बंध अलम्. (१५८) (अतीतादि आश्री भंग) | (१५९) (भव आश्री भंग) ___ भंग | अतीत | वर्तमान | अनागत | घणे भव अपेक्षा | एक भव अपेक्षा | बं श्रेणिथी गिर | कति समये उपशांत फेर ११ मे पूर्व भवे ११ मे, वर्त- | सयोगीने छेहले ___ माने क्षीणमोह । समये पूर्व भवे ११ मे, वर्त- | ११ मे से गिर फिर मान नही, आगे होगा ११/ श्रेणि पावे नही - १४ मे गुणस्थाने उपशांत पहिले ही उपशांत मोहके पाया है प्रथम समये क्षपकश्रेणि चढ्या, शून्य उपशम कदे नही भव्य मोक्षार्ह | १० मे गुणस्थानवाळा भव्य ब . . . सिद्ध a.] - - - - अभव्य मिथ्यादृष्टि वा अभव्य (१६०) संपरायके बंधके भंग 555 अभव्य वा भव्यक ____ | उपशांतमोह गुणस्थान ___ऽऽ। भव्य _____॥ऽ | क्षीणमोह आदिक एह दोनो यंत्र भगवतीजीके.
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy