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नवतत्त्वसंग्रहः
सूर्यग्रहणे
४२ | कार्तिक १ मागसर २, वैशाख ३, सब जगे
८प्रहर ___ श्रावण ४ वदी पडिवा चंद्रग्रहणे सब जगे
जघन्य -८ प्रहर
उत्कृष्ट - १२ प्रहर सब जगे_
१६ प्रहर १२ प्रहर
४ प्रहर चंद्रग्रहणे ऊगतो ग्रस्यो ग्रस्यो ज आथम्यो तदा ४ प्रहर दिन रात्री १ अहोरात्र आगे, एवं १२, रात्रिने छेहडे ग्रस्या तदा ८ प्रहर आगले, एवं ८ वीचमे मध्यम, तथा सूयो ऊगता ग्रस्यो ग्रस्यो ज आथम्यो तो ४ प्रहर दिनना, ४ रात्रिरा अने एक अहोरात्रि आगे, एवं १६, आथमतो ग्रहे १२ प्रहर, दिने ग्रह्यो दिने छूटा तो रात्रिना ४ प्रहर, एवं ४.
इति 'निर्जरा' तत्त्वसंपूर्णम् ॥
... अथ अग्रे 'बन्ध' तत्त्व लिख्यते. प्रथम सर्वबंध देशबंधनो स्वरूप लिखीये हे ते यंत्रात् ज्ञेयम्. (१३६) औदारिक शरीरना सर्वबंध, देशबंधनी स्थिति सर्वबन्धस्थिति
देशबन्धस्थिति समुच्चय औदारिक शरीरना
१ समय
जघन्य १ समय, उत्कृष्ट प्रयोगबंधनी स्थिति
एक समय ऊणा तीन पल्योपम एकेन्द्रिय औदारिक
ज० १ समय, उ० एक समय
ऊणा २२,००० वर्ष पृथ्वीना औदारिक
१समय
ज०३ समय ऊणा क्षुल्लक भव,
उ०१ समय ऊणा २२,००० वर्ष. अप, तेजस्काय, वनस्पति, बेइंद्री,
१समय
ज० ३ समय ऊणा क्षुल्लक | तेइंद्री, चौरिंद्री औदारिक
भव, उ० जिसकी जितनी आयुकी स्थिति है उत्कृष्टी सो १
समय ऊणी कहणी. वायु औदारिक शरीर प्रयोग
ज०१ समय, उ० जिसकी जितनी आयु बंध
की उत्कृष्टीस्थिति है सो १ समय अणी कहणी तिर्यंच पंचेंद्री मनुष्य औदारिक
१ समय
ज०१ समय, उ०१ समय शरीर
ऊणे ३ पल्योपम एह औदारिकना देशबंध, सर्वबंधनी स्थिति.
१ समय
१समय