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________________ ३९० नवतत्त्वसंग्रहः सूर्यग्रहणे ४२ | कार्तिक १ मागसर २, वैशाख ३, सब जगे ८प्रहर ___ श्रावण ४ वदी पडिवा चंद्रग्रहणे सब जगे जघन्य -८ प्रहर उत्कृष्ट - १२ प्रहर सब जगे_ १६ प्रहर १२ प्रहर ४ प्रहर चंद्रग्रहणे ऊगतो ग्रस्यो ग्रस्यो ज आथम्यो तदा ४ प्रहर दिन रात्री १ अहोरात्र आगे, एवं १२, रात्रिने छेहडे ग्रस्या तदा ८ प्रहर आगले, एवं ८ वीचमे मध्यम, तथा सूयो ऊगता ग्रस्यो ग्रस्यो ज आथम्यो तो ४ प्रहर दिनना, ४ रात्रिरा अने एक अहोरात्रि आगे, एवं १६, आथमतो ग्रहे १२ प्रहर, दिने ग्रह्यो दिने छूटा तो रात्रिना ४ प्रहर, एवं ४. इति 'निर्जरा' तत्त्वसंपूर्णम् ॥ ... अथ अग्रे 'बन्ध' तत्त्व लिख्यते. प्रथम सर्वबंध देशबंधनो स्वरूप लिखीये हे ते यंत्रात् ज्ञेयम्. (१३६) औदारिक शरीरना सर्वबंध, देशबंधनी स्थिति सर्वबन्धस्थिति देशबन्धस्थिति समुच्चय औदारिक शरीरना १ समय जघन्य १ समय, उत्कृष्ट प्रयोगबंधनी स्थिति एक समय ऊणा तीन पल्योपम एकेन्द्रिय औदारिक ज० १ समय, उ० एक समय ऊणा २२,००० वर्ष पृथ्वीना औदारिक १समय ज०३ समय ऊणा क्षुल्लक भव, उ०१ समय ऊणा २२,००० वर्ष. अप, तेजस्काय, वनस्पति, बेइंद्री, १समय ज० ३ समय ऊणा क्षुल्लक | तेइंद्री, चौरिंद्री औदारिक भव, उ० जिसकी जितनी आयुकी स्थिति है उत्कृष्टी सो १ समय ऊणी कहणी. वायु औदारिक शरीर प्रयोग ज०१ समय, उ० जिसकी जितनी आयु बंध की उत्कृष्टीस्थिति है सो १ समय अणी कहणी तिर्यंच पंचेंद्री मनुष्य औदारिक १ समय ज०१ समय, उ०१ समय शरीर ऊणे ३ पल्योपम एह औदारिकना देशबंध, सर्वबंधनी स्थिति. १ समय १समय
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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