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नवतत्त्वसंग्रहः
अजीव द्रव्य
।
द्रव्यथी
क्षेत्रथी
गुणथी
काल ४
अनंता
मनुष्यलोक
प्रमाण लोकप्रमाण
कालथी भावथी कालथी | वर्ण आदि ५ नही | वर्तन(ना) गुण
कालस्य कालथी वर्ण, गंध, रस, | ग्रहणलक्षण
- स्पर्श है
पुद्गलास्तिकाय ५ | अनंत
काल
.. (८१) अनुयोगद्वार (सू०७४, ८०-८९) से पुद्गलयंत्रम्
आनुपूर्वी १ | अनानुपूर्वी २ । अवक्तव्य ३ सत्पदप्ररूपणा नियमात् अस्ति
अस्ति
अस्ति द्रव्यपरिमाण अनंते अनंते
अनंते क्षेत्र
संख्य भाग १, असंख्य | असंख्यमे भाग लोकके असंख्यमे भाग २ घणे, संख्ये घणे,
असंख्ये सर्व लोक स्पर्शना | क्षेत्रवत् पांच बोल जानने, असंख्यमे भाग
असंख्यमे भाग वरं स्पर्शना कहनी एक द्रव्य आश्री असंख्य → एवम्
काल, नाना आश्री सर्वाद्धा अंतर
एक द्रव्य आश्री अनंत | एक० असंख्य, नाना | एक अनंत काल, नाना काल, नाना आश्री सर्वाद्धा सर्वाद्धा
सर्वाद्धा | शेष द्रव्यके घणे असंख्य | शेष द्रव्य० असंख्य भाग अधिक
भाग हीन घणे भाव | सादि पारिणामिक भावे है → एवम् अल्पबहुत्व द्रव्यार्थे | ३ असंख्येय गुण । २ विशेष अधिक १ स्तोक अल्पबहुत्व प्रदेशार्थे । | ६ अनंत गुणे अप्रदेश स्तोक ४ विशेष अधिक ५ स्वरूप | त्रिप्रदेशी ४।५।६।७।८।९ पुद्गल परमाणु द्विप्रदेशी स्कंध
यावत् अनंत जिस स्कंधमे आदि, अंत पाइये, मध्य पाइये सो 'स्कंध आनुपूर्वी' कहीये १. जिस स्कंधमे तीन बोलमेसु कोइ बी न पाइये सो 'अनानुपूर्वी' कहीये. जिस स्कंधमे आदि, अंत पाइये पिण मध्य न पाइये सो 'अवक्तव्य' कहीये.
अथ अग्रे लोकस्वरूप व्यवहार नयके मतसे लिखिये है, निश्चयमे तो अनियत प्रमाण है.
भाग