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________________ २३६ नवतत्त्वसंग्रहः अजीव द्रव्य । द्रव्यथी क्षेत्रथी गुणथी काल ४ अनंता मनुष्यलोक प्रमाण लोकप्रमाण कालथी भावथी कालथी | वर्ण आदि ५ नही | वर्तन(ना) गुण कालस्य कालथी वर्ण, गंध, रस, | ग्रहणलक्षण - स्पर्श है पुद्गलास्तिकाय ५ | अनंत काल .. (८१) अनुयोगद्वार (सू०७४, ८०-८९) से पुद्गलयंत्रम् आनुपूर्वी १ | अनानुपूर्वी २ । अवक्तव्य ३ सत्पदप्ररूपणा नियमात् अस्ति अस्ति अस्ति द्रव्यपरिमाण अनंते अनंते अनंते क्षेत्र संख्य भाग १, असंख्य | असंख्यमे भाग लोकके असंख्यमे भाग २ घणे, संख्ये घणे, असंख्ये सर्व लोक स्पर्शना | क्षेत्रवत् पांच बोल जानने, असंख्यमे भाग असंख्यमे भाग वरं स्पर्शना कहनी एक द्रव्य आश्री असंख्य → एवम् काल, नाना आश्री सर्वाद्धा अंतर एक द्रव्य आश्री अनंत | एक० असंख्य, नाना | एक अनंत काल, नाना काल, नाना आश्री सर्वाद्धा सर्वाद्धा सर्वाद्धा | शेष द्रव्यके घणे असंख्य | शेष द्रव्य० असंख्य भाग अधिक भाग हीन घणे भाव | सादि पारिणामिक भावे है → एवम् अल्पबहुत्व द्रव्यार्थे | ३ असंख्येय गुण । २ विशेष अधिक १ स्तोक अल्पबहुत्व प्रदेशार्थे । | ६ अनंत गुणे अप्रदेश स्तोक ४ विशेष अधिक ५ स्वरूप | त्रिप्रदेशी ४।५।६।७।८।९ पुद्गल परमाणु द्विप्रदेशी स्कंध यावत् अनंत जिस स्कंधमे आदि, अंत पाइये, मध्य पाइये सो 'स्कंध आनुपूर्वी' कहीये १. जिस स्कंधमे तीन बोलमेसु कोइ बी न पाइये सो 'अनानुपूर्वी' कहीये. जिस स्कंधमे आदि, अंत पाइये पिण मध्य न पाइये सो 'अवक्तव्य' कहीये. अथ अग्रे लोकस्वरूप व्यवहार नयके मतसे लिखिये है, निश्चयमे तो अनियत प्रमाण है. भाग
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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