________________
१५०
द्र
व्य
इ
न्द्रि
य
भाव
इ
न्द्रि
य
निवर्तन
इन्द्रिय
आकार
५ इन्द्रियांका संस्थान कदंब पुष्प आदिका कह्या है. अंगुलके
असंख्य भाग...
बाह्य इन्द्रिय ८ इन्द्रिय- कर्ण २, नेत्र २, नासिका २, जिह्वा १, स्पर्श १, इनका संस्थान नाना प्रकारे.
२
उपकरण बाह्य इन्द्रिय खड्ग धारा समान स्वच्छतर पुद्गल समूह रूप जैसे खड्गधाराके सार पुद्गल काम करे है तैसे इन्द्रियाके सारता तिनके व्याघात से अंधा, बहिरा आदि होता है.
१
अभ्यंतर उपकरण शक्तिरूप जानने.
श्रोत्रेन्द्रिय आदि विषय सर्व आत्माके प्रदेशामे तदावरणीय कर्मका क्षयोपशम.
लब्धि
१
उपयोग
२
O
इन्द्रिय जघन्य आदि
संस्थान
जाडपणा
o
०
(६६ ) अथ इन्द्रियस्वरूपयंत्रम् प्रज्ञापना १५ मे पदे
विस्तार
स्कंध
अवगाहना असं० प्रदेश
अल्प अवगाहना
ब
हु
त्व
म्
स्पृष्ट
प्रविष्ट
विषये
०
प्रदेश
कर्कश गुरु
मृदु लघु
०
o
अभ्यंतर २
•
अभ्यन्तर
इन्द्रिय १
स्व स्व विषयमे लब्धिरूप इन्द्रियाके अनुसारे आत्माका व्यापार ते 'उपयोग इन्द्रिय' कहीये. इति 'नन्दीवृत्तौ . (६७) श्रीप्रज्ञापना पद १५ से इन्द्रिययन्त्रम्
श्रोत्रेन्द्रिय
कदंब पुष्प
अंगुल असंख्य
भाग
""
अनंत प्रदेश
→>
२ संख्येय गुणा
७ संख्येय
२ अनंत
९ अनंत गुणे
१. नन्दीसूत्रनी वृत्तिमां ।
स्पृष्ट
प्रविष्ट
जघन्य अंगुल असंख्य
उत्कृष्ट
१२ योजन
चक्षु
मसूर चंद्र
→ ए
एवम्
→ ए
ए
१ स्तोक
६ अनंत
१ स्तोक
१० अनंत गुणे
अस्पृष्ट
अप्रविष्ट
→ ए
लाख योजन झझेरी
घ्राण
अतिमुक्त
व.
एवम्
व
व
३ संख्य
८ संख्येय
३ अनंत
८ अनंत गुणे
स्पृष्ट
प्रविष्ट
व
नव योजन
रसनेन्द्रिय
छु (खु) रप्य
म्
पृथक् अंगुल
म्
म्
४ असंख्य
९ असंख्येय
४ अनंत
७ अनंत गुणे
नवतत्त्वसंग्रहः
स्पृष्ट
प्रविष्ट
म्
नव योजन
स्पर्शन
नाना संस्थान
शरीरप्रमाण
->>
->
५ संख्यस्वरूप
टीका
१० संख्येय
५ अनंत
६ अनंत गुणे
स्पृष्ट
प्रविष्ट
→>
नव योजन