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नवतत्त्वसंग्रहः ___इस गाथासे जैसें १२ रज्जु स्पर्शे तैसें विचार लेना. मैने पंचसंग्रहका अर्थ नही देखा, अपनी विचारसे लिखा है. विचारसे लिखना यथायोग्य होय अने नही भी होइ, इस वास्ते पंडितें शुद्ध विचारके जैसें होय तैसें लिख देना, मेरे लिखनेका कुछ प्रयोजन नही समजना, अर्थमे जैसा लिखा होइ सो लिख देना.
त्रीजे चोथे गुणस्थानवाला ८ रज्जु स्पर्श तिसकी युक्ति (पंचसंग्रहका द्वितीय बन्धकद्वारकी) इस (३१ मी) गाथासे समज लेना:गाथा-'सहसारंतियदेवा णारयणेहेण जंति तइयभुवं ।
निजंति अच्चुयं जा अच्चुयदेवेण इयरसुरा ॥" बारमे देवलोकका देवता मिश्रवाला वा चौथे गुणस्थानवाला नारकीके नेह कही चौथी नरककी पृथ्वी लगे जाये. तीन रज्जु तो नीचेके हूये अने ५ रज्जु बारमा देवलोक है, एवं ८ रज्जु. त्रीजी नरक तो सारी अने चौथीके नरकावास ताइं एवं ३ रज्जु, आगे पंचसंग्रहके अर्थ मुजब लिख देना. मेरी समजमें आया तैसे लिख्या है. श्रावक बारमे देवलोकके कूणेमे उपजे, वसनाडीके अभ्यंतर तिस आश्री ६ रज्जु. सर्वत्र पंचसंग्रहसे शंका दूर कर लेनी. ६८ संज्ञी असंज्ञी | सं सं | सं | सं| सं| सं| सं | सं | सं| सं | सं | ० ०
द्वार असं| असं ६९ शाश्वते गुणस्थान | शा अशा अशा शा | शा | शा| शा| अशा | अशा अशा अशा | अशा शा| अशा
सातमा गुणस्थान जैन मतके शास्त्रमे किहां ही अशाश्वत नही कह्या. अने जो कोइ कहै है सो इ भूल है, उक्तं पंचसंग्रहे (द्वितीये बन्धकद्वारे गा० ६)
“२मिच्छा अविरयदेसा पमत्त अपमत्तया सजोगी य ।।
सव्वद्धं" इति वचनात् अशाश्वता नही है. इति अलं विस्तरे(ण).
जघन्य | अंत- १ अंत- अंत- अंत- १- एवम् → अंत-| अंत-| अंत | स्थिति द्वार| मुहूर्त | समय मुहूर्त | मुहूर्त | मुहूर्त | समय | | मुहूर्त | मुहूर्त | मुहूर्त उत्कृष्ट | अणा | ६ अंत
अंत-|→ ए| व | म् स्थिति द्वार | अप १ || आव-र्मुहर्त
अणा | लिका झझेरी स २
एक सा सा देश ऊन
अर्ध
पुद्गल १. सहस्रारान्तिकदेवा नारकस्नेहेन यान्ति तृतीयभुवम् । ___ नीयन्तेऽच्युतं यावत् अच्युतदेवेनेतरसुराः ॥ २. मिथ्याविरतदेशाः प्रमत्ताप्रमत्तकौ सयोगी च । सर्वाद्धम्
र्मुहूर्त
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सागर