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नवतत्त्वसंग्रहः
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१०५२ असंख्य
असंख्य वर्ग जाइये तब लोकाकाश प्रदेश आवै असंख्य असंख्य असंख्य वर्ग जाइये तब तेउकायके सर्व जीव राशि असंख्य असंख्य असंख्य वर्ग जाइये तब तेउकायकी कायस्थिति समय असंख्य असंख्य १ विरिया वर्ग कीने तब परम अवधिज्ञानका क्षेत्र आवै असंख्य असंख्य ___ असंख्य वर्ग जाइये तब स्थितिबंधके अध्यवसाय असंख्य असंख्य । असंख्य वर्ग जाइये तब अनुभागबंधके अध्यवसाय असंख्य असंख्य । असंख्य वर्ग जाइये तब निगोदके शरीर औदारिक असंख्य असंख्य असंख्य वर्ग जाइये तब निगोदकी कायस्थिति
असंख्य दोहा-च्यारि ४ आठ ८ ओ पांचसे, बारह ५१२ आदि कहंत ।
धारा तीनो जाणिये, आगे वर्ग अनंत ॥१॥ चौपाइ-कृत धारामे वर्ग विचार, ताके घन लइये घनधार ।
घनाघन धारामे तस वृंद, इम भाषे सबही जिनचंद ॥१॥ दोइ २ तीन ३ अरु नौ ९ है छेद, आदि तिहुं धारा इम भेद । आगे दुगुण दुगुण सब ठाम, वरग कृति घन वृन्दो नाम ॥२।। दूने कृतिमे तिगुने घणा, नौ गुण छेद घनाघन तणा । इक इक धारा तीन प्रकार, गुण १ पुनि भाग २ अयसि ३ निहार ।।३।। छेद जोग है इस गुणकार, तस विजोग है भागाहार ।
निजसम थल थापीजे रास, अन्नो अन्नताको अभ्यास ॥४॥ दोहा-पहिले विरलन देय पुनि, तासौ है उत्पन्न ।
विरलन जाहि विषे(खे)रीये, देय उपरजो दिन्न । चौपाइ-विरलन राशि करो गुणाकार, देय छेद सौ बुद्धिविचार ।
. जो आवे सो छेद प्रमाण, उत्पन्न राशि इह विद्यमान ॥१॥ विरलन राशि स्थापना–४ । १ १ १ १. देय राशि स्थापना-४ ४ ४ ४ देय राशिके
छेद २ सें देय राशिकू गुण्या लब्ध ८ छेद. इतने उत्पन्न राशिके २५६ छेद होय. दोहा-अर्ध अर्ध जो छेदको, कीजे सो कृति रास ।
अपने छेद समान ही, वर्ग होय अभ्यास ॥१॥ राशि १६, छेद ४. चौथे ठिकाणे उत्पन्न राशि १८४४७४४०७३७०९५५१६१६.