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नवतत्त्वसंग्रहः मोहनीय मिली-पांचमे ९ टली-दूजी चौकडी ४, गति २, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, एवं ९. छठे ६ टली-तीजी चौकडी ४, तिर्यंच-गति १, नीच गोत्र १, एवं ६ टली. सातमे ३ निद्रा टली. आठमे एक सम्यक्त्वमोहनीय टली. नवमे हास्य आदि ६ टली. दशमे ३ वेद, लोभ विना तीन संज्वलनकी, एवं ६ टली, ११ मे संज्वलनका लोभ टला. बारमे ३२ तो ग्यारमेवत्. अंतके द्विसमयेमे दो निद्रा टली. तेरमे १४ टली-ज्ञाना० ५, दर्शना० ४, अंतराय ५, एवं १४, तीर्थंकरनाम मिल्या. चौदमे ६ टली-एक तो वेदनीय साता वा असाता १, विहायोगति २, सुस्वर १, दुःस्वर १, उच्छ्वास १, एवं ६ टली, ११ रही-साता वा असाता १, मनुष्यगति १, पंचेन्द्रिय १, सुभग १, त्रस १, बादर १, पर्याप्त १, आदेय १, यश १, तीर्थंकर १, उंच गोत्र, एवं ११. ३६ पुद्गलविपाकी ३६ ३४ ३२ ३२ ३२| ३० ३१/ २९ / २६ / २६ | २६ / २६ २४ २४ १० ____ पुद्गलविपाकी ३६-शरीर ५, अंगोपांग ३, संहनन ६, संस्थान ६, वर्ण आदि ४, पराघात १, आतप १, उद्द्योत १, अगुरुलघु १, निर्माण १, उपघात १, प्रत्येक १, साधारण १, स्थिर १, शुभ १, अस्थिर १, अशुभ १, एवं ३६. पहिले २ टली-आहारकद्विक २. दूजे २ टली-आतप १, साधारण १. एवं तीजे, चौथे. पांचमे वैक्रियद्विक २. छठे १ उद्योत टलीआहारक १, अने आहारकद्विक २ मिले. सातमे २ टली-आहारकद्विक २. आठमे ३ टलीअंतके ३ संहनन. एवं ११ मे ताइ. १२ मे २ टली-दूजा, तीजा संहनन. एवं तेरमे बारमेवत्. (अर्थ)-पुद्गलने रस देवे पिण जीवने नही. ३७ | ज्ञानावरणीयके
बंधस्थान १ ज्ञानावरणीयके उदयस्थान १ ज्ञानावरणीयके
५
| ०००
५ | ५००
५/५/५/५
५ - ५००
| सत्तास्थान
ज्ञानावरणीय कर्मना बंधस्थान १, पांच प्रकृतिना, एवं उदयस्थान १, सत्तास्थान १ पांच रूप.
४० | दर्शनावरणीयके | २ | २ | ६ ६ ६ ६ ६ ६
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बंधस्थान ३
नवमो बंधस्थान प्रथम. दूजे गुणस्थानमे १. छका बंधस्थान त्रीजासे लेकर आठमे गुणस्थानके प्रथम भागमे होइ है. छके बंधमे ३ टली-निद्रानिद्रा १, प्रचलाप्रचला १, स्त्यानधि १, एवं ३ टली. चारनो बंधस्थान अपूर्वकरणके दूजे भागथी लेकर दशमे ताइ है. चारके बंधस्थानमे २ प्रकृति टली-निद्रा १, प्रचला १. एवं दर्शनावरणीयके बंधस्थान ९।६।४.