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नवतत्त्वसंग्रहः हिवै परमावधिनो धणी कितना क्षेत्र जाणे अने कितना काल जाणे ए वात कहीये है. (४६) यंत्रम्द्रव्यथी । क्षेत्री
कालथी
. भावथी सूक्ष्म, बादर सर्व | सर्व लोक अग्निके सर्व | असंख्याती अवसर्पिणी | एकेक द्रव्य प्रते संख्याता रूपी द्रव्य देखे जीवाकी सूची प्रमाण | उत्सर्पिणी काल देखे | पर्याय देखे परमावधि
अलोकमे देखे एह अवधि मनुष्य आश्री कह्या. हिवै तिर्यंच आश्री अवधिज्ञान कहीये है. पंचेन्द्रिय तिर्यंच अवधिज्ञाने करी औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस ए सर्व द्रव्य देखे अने इसके मापेका क्षेत्र, काल, भाव आपे विचारणा कर लेनी. एह मनुष्य तिर्यंचने क्षयोपशमक अवधिज्ञान कह्या.
(४७) हिवै भवप्रत्यय नारकी देवताना अवधिमे प्रथम नारकीना अवधि क्षेत्र यंत्र लिख्यतेविषय | रत्नप्रभा | शर्कराप्रभा | वालुकाप्रभा | पंकप्रभा | धूमप्रभा | तमप्रभा | तमतमप्रभा जघन्य | ३॥ गाउ | ३ गाउ | २॥ गाउ | २ गाउ | १॥ गाउ | १ गाउ | .॥ गाउ उत्कृष्ट | ४ गाउ | ३॥ गाउ | ___३ गाउ | २॥ गाउ | २ गाउ | १॥ गाउ | १ गाउ ___ असुर-जघन्य २५ योजन, उत्कृष्ट असंख्य द्वीप समुद्र. नवनिकाय व्यंतर-जघन्य २५ योजन, उत्कृष्ट संख्याते द्वीप. जोतिषी-जघन्य संख्याते द्वीप, उत्कृष्ट संख्यतर द्वीप. सौधर्म । ३-४ । ५-६ । ७-८ । ९-१२ | ६ ग्रैवेयक | ३ ग्रैवेयक | ५ अनुत्तर ईशान । स्वर्ग | स्वर्ग | स्वर्ग | स्वर्ग । रत्नप्रभाका | दूजीका | त्रीजीका | चौथीका | पांचमीका | । छठीका | सातमीका | किंचित् नीचलाचरम | नीचला
चरम अंत
चरम अंत | न्यून लोक ___ अंत | चरम अंत
सर्व ___ 'सौधर्म' देवलोकथी नव ग्रैवेयक पर्यंत जघन्य अंगुलके असंख्यमे भाग देखे. पूर्व भव अवधि अपेक्षा सर्व विमानवासी ऊंचा तो अपनी ध्वज तांई देखे अने तिरछा असंख्य द्वीप, समुद्र देखे. असंख्यातके असंखय भेद है.
(४८) हिवै आयु आश्री अवधिज्ञान कितना होवे है ते यंत्रात् ज्ञेयं. अर्ध सागरथी ओछी आयुवाला
संख्याते योजन प्रमाण देखे उत्कृष्ट पूरी अर्ध सागरनी आयुवाला देवता
असंख्य योजन प्रमाण देखे उत्कृष्ट अर्ध सागरसे उपरांत जिसकी आयु है ते । असंख्य योजन प्रमाण देखे उत्कृष्ट