Book Title: Mohonmulanvadsthanakam Author(s): Jaysundarvijay, Mahabodhivjay Publisher: Jinshasan Aradhana Trust View full book textPage 9
________________ सम न्यायाष्टिषदर्शनभां सोश्री अत्यंत निष्यात हता, स्व-परसभुटायना अनेऽ विद्वान भुनिलगवंतोने नव्यन्यायना सूक्ष्मपघार्थो ओश्रीसे अनेठान्तशैलीथी सभशव्या हता, नव्यन्यायथी परिभितमुद्धिना स्वाभी होवाथी आगभग्रंथो सने घार्शनियन्थोना छे भेटपर्थार्थ सुधी पहोंयवानी सोश्री. 'पासे मागवी पूजा हती, वैराग्यरसथी लीनी लीनी वाशीनी वर्षा द्वारा हजारों आत्भाओना संसार प्रत्येना भोहनु पेओश्रीमे उन्मूलन युं हतुं. न्यायविशारट, वर्धमानतपोनिधि, स्व. गछाधिपति, ... परमगुरुदेव पूश्यपाट माथार्यवि. श्रीभविश्यलुवनलानु सूरीश्वर महाराना यरशभणमां अनंत-अनंत वंटना साथे । तेमोश्रीना यारित्रपूतहरभणभां आ ग्रन्थपुष्पy सानंह/साटर/सप्रेम/सोधास/समभान सभा - पं.यसुंE२ विrail - मुनि मोबिविय.Page Navigation
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