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समर्पण का सूत्र : चतुर्विंशतिस्तव
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समर्पण का अर्थ होता है—अपने अहंकार का विसर्जन, अपने ममकार का विसर्जन | जब तक व्यक्ति में अहंकार और ममकार होता है, तब तक समर्पण नहीं हो सकता और यह साधना का क्षेत्र ही ऐसा है जिसमें केवल समर्पण की बात है । साधना के क्षेत्र में कोई व्यक्ति प्रविष्ट हो और समर्पण न करे तो वह कभी सफल नहीं हो सकता । एक सैनिक जितना अपने अधिकारी के प्रति समर्पित होता है, अपनी व्यवस्था के प्रति समर्पित होता है, साधक को उससे भी ज्यादा समर्पित होना होता है ।
जापान में बौद्धों का एक सम्प्रदाय है — झेन बौद्ध । एक शिष्य गया अपने गुरु के पास बोला - गुरुदेव, मैं कौन हूं, यह जानना चाहता हूं । गुरु ने डंडा उठाया और लगा दिया। वहां से दौड़ा हुआ गया वह मुख्य गुरु के पास शिकायत करने के लिए। बोला - गुरुदेव, मैं तो केवल यह जानने के लिए गया था अपने गुरु के पास कि मैं कौन हूं और उन्होंने मुझे डंडे से मारा। गुरु ने कहा – उसने तो डंडा ही मारा । चला जा, मुझसे यह मत पूछ, अन्यथा मैं डंडा, लात और चांटे भी मारूंगा, क्योंकि जो प्रश्न अपने आप से पूछना है, वह तू मेरे से पूछने आया है 1 अभी तुझमें समर्पण नहीं आया । सत्य के प्रति अभी तू समर्पित नहीं हुआ है । जब तक समर्पण नहीं आएगा, तेरा अहंकार और ममकार नहीं छूटेगा, तब तक इस प्रश्न का उत्तर तुझे नहीं मिलेगा ।
साधना का मार्ग पूर्ण समर्पण का मार्ग है । हमारे धर्मसंघ में विनय और समर्पण की अनेक महत्त्वपूर्ण घटनाएं उपलब्ध हैं । हमारा इतिहास समर्पण का इतिहास है । परिणाम भी स्पष्ट है कि आज तेरापंथ धर्मसंघ को जो सुषमा मिली है, जो विकास हुआ है, शायद अन्यत्र कम हुआ है। इसका कारण साफ है कि
गुरु और शिष्य के बीच में तर्क का व्यवहार होता है, केवल बुद्धि का व्यायाम चलता है तो वह संघ कभी गतिशील नहीं बन सकता । साधना का मार्ग है— अपने अहंकार का विलयीकरण । मैंने जीवन के दोनों पक्षों का अनुभव किया है। तर्क के क्षेत्र का पूरा अनुभव किया है। तर्कशास्त्र का विद्यार्थी रहा । उसका पूरा प्रयोग किया और बड़ी मल्ल कुश्तियां भी लड़ीं। बड़ी चर्चाएं हुई हैं विद्वानों के बीच । किन्तु जहां गुरु का प्रश्न था, वहां पूर्ण समर्पण का अनुभव किया। यह मेरे जैसा भोला व्यक्ति ही कर सकता था, समझदार व्यक्ति तो ऐसा कर ही नहीं सकता । मुझे याद है कि पूज्य कालूगणी पाली में विराज रहे थे, और मैं था अध्यापक गुरु तुलसी के पास । किसी कारणवश उनके मन में कोई नाराजगी हो गई, वे अप्रसन्न हो गए। मुझे नहीं मान्य था कि वे अप्रसन्न रहें । प्रतिक्रमण के बाद मैं गया ।
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