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जिन शासन : १ तत्त्व में, फिर चाहे वह आत्मा हो या पुद्गल, तीन बातें होती हैं— उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य । एक तत्त्व है— ध्रौव्य, जो शाश्वत है । दूसरा तत्त्व है—अशाश्वत अर्थात् परिवर्तनशील । उत्पन्न होता है, नष्ट होता है । दूसरी भाषा में कहें तो एक अप्रकम्प तत्त्व है, दूसरा प्रकम्प तत्त्व है । एक शाश्वत और अप्रकम्प हैं, कभी प्रकम्पित नहीं होता। किन्तु साथ में वह प्रकम्पनों से घिरा रहता है। चारों ओर प्रकम्पन ही प्रकम्पन, तरंगें ही तरंगें,ऊर्मियां ही ऊर्मियां उछलती रहती हैं । हमारा पूरा व्यक्तित्व ऊर्मियों का एक जाल है । प्रकम्पन प्रकम्पन से प्रभावित होता है । एक शक्तिशाली व्यक्ति होता है, एक प्राणवान् व्यक्ति होता है, उसकी प्राणधारा के वर्चस्वी प्रकम्पन निकलते हैं तो आस-पास में बैठे सारे लोग प्रभावित हो जाते हैं, प्रकम्पित हो जाते हैं । इसीलिए समूह ध्यान का बड़ा महत्त्व होता है और इसीलिए शासन का भी बहत महत्त्व होता है। एक शासन है। शासन में एक नेता या साधक शक्तिशाली है तो समूचा शासन उससे प्रभावित हो जाता है । तपस्या, हमारी ज्ञान की आराधना चरित्र और दर्शन की आराधना जितनी शक्तिशाली होती है, अनुशास्ता की जितनी शक्तिशाली होती है, सब उससे प्रभावित हो जाते हैं। आश्चर्य तो यह होता है कि एक शक्तिशाली व्यक्ति हो गया, चला गया, उसकी वाणी बची हुई है, उस वाणी में भी इतनी ताकत होती है कि उससे लोग प्रभावित हो जाते हैं। आचार्य भिक्षु ने कुछ कहा, चले गए। आज दो शताब्दियां बीत गई, किन्तु उनकी वाणी में आज भी चमत्कार है । एक बार मैंने लिखा था नमस्कार हे सन्त ! तुम्हारे शब्दों में कोई चमत्कार है, उनके शब्दों में आज भी चमत्कार है, ऐसा लगता है कि कठिनाई समाप्त हो रही है । चले जाने वाले व्यक्ति के प्रकम्पन भी शेष रह जाते हैं, हजारों वर्षों तक रह जाते हैं । इसीलिए स्थान का महत्त्व होता है, तपोभूमि का महत्त्व होता है, तपस्वी का महत्त्व होता है । जिस स्थान में वह जिया, जिस स्थान में उसने तपस्या की, साधना की, उस स्थान से चले जाने के बाद भी उसके प्रभाव और उसके प्रकम्पन उस स्थान में, उस वातावरण में बच जाते हैं और वे हजारों-हजारों लोगों को लम्बे समय तक प्रभावित करते रहते हैं।
जिन शासन हमारे सामने एक अद्भुत शासन है। शासन के दो रूप बनते हैं एक है क्रूरता का शासन और दूसरा है चेतना का शासन । बहुत से लोग अनुशासन को लाने के लिए क्रूर शासन में विश्वास करते हैं और बहुत लोग इस बात में विश्वास करते हैं कि शासन आत्मा की सहज, स्वाभाविक प्रेरणा से उद्भूत होता है । क्षान्ति, मुक्ति, आर्जव और मार्दव-ये चार बातें होती हैं तो
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