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उस संघ को प्रणाम
१६७ लगड़ा बन जाता है। हम इस बात का बराबर मूल्यांकन करते रहें। तेरापंथ धर्मसंघ के परिसर में पनपने वाला, तेरापंथ की आत्मा को समझने वाला व्यक्ति इस बात को बड़ी गहराई से स्वीकार करेगा कि अनुशासन की गरिमा बराबर बनी रहे।
आज मुझे गर्व होता है कि तेरापंथ के हर श्रावक को अपनी आनुवंशिकता और पैतृक विरासत के रूप में यह संस्कार मिल जाता है । इसलिए वह अनुशासन और संगठन को बराबर मूल्य देता चला जा रहा है । संघ और संघपति के प्रति अटूट आस्था और समर्पण तेरापंथ की प्रगति का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है । आचार्यश्री तुलसी के नेतृत्व में तेरापंथ ने अपने मौलिक सिद्धान्तों को यथावत् रखते हुए जिस प्रकार नयी-नयी दिशाओं का, नये-नये आयामों का उद्घाटन किया है, फिर वह चाहे साहित्य का क्षेत्र हो, चिन्तन का क्षेत्र हो या अध्यात्म का क्षेत्र हो, प्रत्येक क्षेत्र में जो अपने पैर आगे बढ़ाए हैं, वह एक नेतृत्व का ही सुपरिणाम है । तेरापंथ की चहुमुखी प्रगति का आधार यही रहा है और रहेगा। संघ को प्रणाम
उस बीज का मूल्य होता है जो पल्लवित होकर छांव दे सकता है, रस दे सकता है । उस ज्योति का मूल्य होता है जो अंधकार को प्रकाश में बदलने की क्षमता रखती है। तेरापंथ आज एक विशाल वृक्ष का रूप धारण कर सबको सुखद शीतल छांव दे रहा है । तेरापंथ आज एक दिव्य ज्योति के रूप में अंधकार को प्रकाश में बदल रहा है। नीरसता में सरसता का अंकुरण कर रहा है तथा अनास्था में आस्था को जगा रहा है।
अतीत की गाथाएं सुनते-सुनते काम बहरे हो जाते हैं । उसके साथ हमारा संबंध मात्र पचीस प्रतिशत होता है और पचीस प्रतिशत ही संबंध होता है हमारा अनागत या कल्पना से । किन्तु पचास प्रतिशत संबंध हमारा वर्तमान से होता है । जिसके पैर वर्तमान के धरातल पर टिकते हैं, सही अर्थों में वही अपना मूल्य स्थापित कर पाता है। जिसके पैर अतीत की ओर या अनागत की ओर चलते हैं, उसका मूल्य दुनिया में कम होता है । आचार्य भिक्षु का विचार, आचार तथा दर्शन आज भी जीवित है और इस दुनिया में जो जीवित है, जिसमें वर्तमान में सांस लेने की क्षमता है, उसी की पूजा होती है। ___आचार्य भिक्षु स्वयं वर्तमान को समझने वाले थे। उन्होंने वर्तमान को जितना समझा बहुत कम लोग समझ पाते हैं । वर्तमान और विवेक दोनों से उन्होंने काम
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