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उस संघ को प्रणाम
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शक्तिहीन दूसरों की समस्या का समाधान नहीं दे सकता । बुझी हुई राख कभी प्रकाश नहीं दे सकती, प्रज्ज्वलित ज्योति ही अन्धकार को प्रकाश में बदल सकती है । तेरापंथ ने स्वयं शक्ति अर्जित की है। अनुशासन, संगठन, व्यवस्था, अहंकार और ममकार का विसर्जन, सत्यनिष्ठा और ब्रह्मचर्य - ये हमारी शक्ति के स्रोत हैं ।
अपने और अनुशासन से शक्ति सम्पन्न हो उससे मानव जाति अपेक्षा रखती है । तेरापंथ के आचार्य तुलसी ने उन अपेक्षाओं को 1 पूरा करने का प्रयत्न किया है- अणुव्रत के माध्यम से, प्रेक्षा- ध्यान के माध्यम से, नये विचार और सृजनात्मक दृष्टिकोण के माध्यम से ।
आज तक तेरापंथ की ओर से किसी भी सम्प्रदाय के विरोध में दो पंक्तियां भी नहीं लिखी गई हैं। सवा दो सौ वर्षों का इतिहास इस तथ्य का साक्षी है 1 जिसका इतना सृजनात्मक और रचनात्मक दृष्टिकोण रहा हो, वह देने की क्षमता में आता है । इस महान शक्तिशाली दायित्व-बोध, युगबोध और युग-चेतना के साथ चलने वाले संघ को प्रणाम ।
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