Book Title: Meri Drushti Meri Srushti
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 175
________________ महान् पर्व संवत्सरी संवत्सरी का महान् पर्व जैन समाज के लिए महास्नान का पर्व है। यह महाकुंभ स्नान है। यह अंतःकरण की व्याधियों और मनोकायिक बीमारियों की शुद्धि के लिए चिकित्सा-पर्व है । और स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए तथा भविष्य की प्रतिबद्धता के लिए कार्य-सिद्धि का पर्व है। इस प्रकार वह शुद्धि का पर्व है, चिकित्सा का पर्व है और सिद्धि का पर्व है। सामजिक संपर्कों में जीने वाले हर व्यक्ति में प्रियता और अप्रियता का भाव न आए, यह कम संभव है। प्रियता और अप्रियता का भाव आए और रागद्वेष न उभरे, यह संभव ही नही है। राग-द्वेष जागे और ईर्ष्या की कालिमा चित्रपट पर न जमे, यह असंभव बात है। वह कालिमा जमे और व्यक्ति को शारीरित और मानसिक दृष्टि से न सताये, यह कभी हो ही नहीं सकता। सभी शारीरिक और मानसिक बीमारीयां वहीं से उत्पन्न होती हैं। इस पर्व का मूल्य केवल आध्यात्मिक ही नहीं, इसका चिकित्सात्मक तथा स्वास्थात्मक मूल्य भी है। यह जैन तीर्थकारों और आचार्यों का महान् अवदान है। प्रत्येक व्यक्ति शारीरक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को गतिशील रख सके और भविष्य में आने वाले अवरोधों को मिटा सके, इसलिए उन्होंने एक दिन का चुनाव किया और वह महान् पर्व बन गया। यह संवत्सरी पर्व सिद्धि न करें तो वह चक्र बराबर चलता रहेगा। सबसे महत्त्वपूर्ण बात है प्रतिरोधात्मक शक्ति । शरीर में रोग-निरोधक क्षमता होनी चाहिए । प्रतिरोधात्मक शक्ति से ही रोग के कीटाणुओं से लड़ा जा सकता है । यदि वह नहीं होती है तो रोग का आक्रमण सहज हो जाता है। क्षमा का अर्थ है सहिष्णुता । जब सहिष्णुता की शक्ति का विकास नहीं होता तब आदमी क्षमा करके भी क्षमा का लाभ नहीं उठा पाता । बहुत बार आदमी भ्रम को पाल लेता है, केवल शाब्दिक स्थिति में चला जाता है और अन्तर्भाव में सहिष्णुता का क्रमिक विकास तो हो नहीं पाता और उसे क्षमा का सीमाबोध भी नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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