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मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि जब जनगणना होती है तो हिन्दू, जैन, बौद्ध---सब अलग-अलग लिखाया जाता हैं । हम भी कहते हैं कि धर्म में जैन लिखाओ । आखिर लोग हिन्दू क्यों लिखाए ? सबसे बड़ा खतरा तो यह है कि हिन्द धर्म लिखाने से अन्य धर्म कमजोर पड जाते हैं । हम राष्ट्रीयता में हिन्दू लिखा सकते हैं, धर्म में नहीं। अगर सभी लोगों को हिन्दू रखना चाहते हैं तो इसे धर्म की परिधि से निकालकर राष्ट्र, संस्कृति और समाज से जोड़ना होगा। अगर 'धर्म' राष्ट्रवाचक होता तो सभी धर्म के लोग अपने को हिन्दू कहते । धर्म के साथ जोड़ने में हित कम, अहित ज्यादा हुआ है। अगर हिन्दू धर्म को वैदिक धर्म कहें तो अन्य धर्म अलग हो जाते हैं। अगर भारतीय धर्मों को हिन्दू धर्म में रखें तो इसकी नयी परिभाषा बने।
पांचजन्य-प्रसिद्ध चिन्तक डॉ० राधाकृष्णन ने हिन्दू धर्म की चर्चा की है....
युवाचार्य-सभी चिन्तन समय पर आएं, यह कोई जरूरी नहीं। भारतीय धर्म-मात्र को अगर हिन्दू धर्म कहें तो ईसाई, मुसलमान भी भारतीय रहेंगे। लेकिन उससे अलग करके देखें तो सब अलग-अलग हो जाते हैं। अधिकांश लोग वैदिक धर्म को ही हिन्दू धर्म के मानते हैं । जैन, बौद्धों को इसमें लाते ही नहीं, उन्हे अलग कर देते हैं। हिन्दू धर्म माने वैदिक धर्म।
पांचजन्य-हिन्दू धर्म के अन्तर्गत तो सभी आते हैं--
युवाचार्य-कैसे हुआ, कब हुआ, किसने किया? यह बस चल पड़ा है। कोई सुनियोजित शब्द नहीं है । शब्दों का एक जाल-सा है । धर्म तो अपनी-अपनी परम्परा से है। अब आवश्यक है कि हिन्दू शब्द को व्यापक बनाया जाए। हिन्दुस्तान तो व्यापक शब्द है । सब कोई आने को हिन्दुस्तानी कहते हैं, कोई संकोच नहीं करते । हिन्दू की परिभाषा को अगर व्यापक रूप दे दिया जाए तो लोग आने आपको हिन्दू कहेंगे ही।
पांचजन्य-हिन्दू कहते ही प्रतिपक्ष मुसलमान क्यों खड़ा हो जाता है ? बौद्ध, जैन, सिख क्यों नहीं? युवाचार्य जब हिन्दू लॉ आया था तब जैनों ने साफ कहा था कि हम हिन्दू नहीं हैं, हम पर लागू नहीं होना चाहिए।
आज सिक्ख क्यों अपने आपको हिन्दू नहीं मान रहे हैं, जबकि मुसलमानों से ज्यादा संघर्ष सिक्खों ने ही किया था। फिर आज क्या हो गया? यह धर्म के कारण ही हुआ है।
पांचजन्य-लेकिन सिक्खों के गुरु गोविन्द सिंह ने अपने को हिन्दू कहा था। और उसी के लिए सतत कार्य किया।
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