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'हिन्दू' शब्द की युति कहां ? कैसे ?
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दिल्ली प्रवास १९८१ 'में पांचजन्य' के प्रतिनिधि आए। उनके मन में अनेक प्रश्न थे । उन्होंने युवाचार्य श्री से उनका उत्तर चाहा । प्रश्न और उत्तर 'पांचजन्य' के ४-१०-८१ के अंक में 'हिन्दू को धर्म के साथ नहीं, राष्ट्र के साथ जोड़े' शीर्षक से छपे । उसका यह संकलन है । - सं०
पांचजन्य- 'पांचजन्य' के साथ पिछले साक्षात्कार में तथा अपने एक भाषण में आचर्यश्री तुलसी ने सुझाव दिया था कि 'हिन्दू' को धर्म के साथ नहीं, राष्ट्र के साथ जोड़ा जाना चाहिए । इस संदर्भ में मैं पूछना चाहूँगा कि आप हिन्दू की परिभाषा क्या मानते है ?
युवाचार्य - हिन्दू एक राष्ट्र का नाम है। सिन्धु नदी के सीमाकरण के कारण इसका नाम हिन्दू हुआ । जैन ग्रन्थों में उल्लेख आता है कि एक जैनाचार्य ने आने शिष्य से कहा
चलो हिन्दू देश में चलें ।
'एहि हिन्दुदेशम् बच्चामी'
दरअसल यह देश के लिए प्रयुक्त होने वाला नाम था । अब रहा धर्म का प्रश्न, तो धर्म की तीन मुख्य धाराएँ रही हैं - वैदिक, जैन और बौद्ध । वैसे प्राचीनकाल में मुख्यतः दो धाराएँ रही थीं - ब्राह्मण और श्रमण । इन दोनों की बहुत सारी शाखाएं थीं । हिन्दू कोई धर्म नहीं था। आज बहुत कठिनाई हो गयी हैं । हिन्दू की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है, इसकी कोई स्पष्ट अवधारणा नहीं है जैन, बौद्ध, सिख इसमें क्यों नहीं आते हैं ? इसलिए आज इस पर बल देना आवश्यक हो गया है कि इस शब्द को धर्म के साथ न जोड़ा जाए। बीच में किन्हीं कारणों, परिस्थितयों से चल पड़ा, परन्तु अब पुनर्विचार होना चाहिए ।
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पौंचजन्य - हिन्दू को राष्ट्र के साथ न जोड़कर धर्म के साथ जोड़े रखने में आप क्या खतरा महसूस करते हैं ?
युवाचार्य - हिन्दू धर्म प्राचीन तो है नहीं। यह शब्द ही बाद का है । हमारे श्रावक पूछते हैं कि हम क्या हैं? जैन हैं कि हिन्दू है ? बड़ी कठिनाई होती है ।
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