Book Title: Meri Drushti Meri Srushti
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 144
________________ १४२ मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि -एक ओर आप ध्यान की गहराई में प्रवेश कर रहे हैं, दूसरी ओर अन्यान्य कार्यक्रमों में भी उतना ही रस लेते हैं । क्या यह आपके जीवन की विसंगति नहीं __“विसंगति ।” एक क्षण रुककर युवाचार्यश्री बोले--"एक भूमिका में जो विसंगति लगती है, दूसरी भूमिका में वही संगति बन जाती है। यही तो जीवन की समस्वरता है । मेरा यह अभिमत है कि प्रवृत्ति के आधार पर चेतना की पहचान नहीं हो सकती । किन्तु चेतना के विकास की भूमिका के आधार पर प्रवृत्ति और चेतना की संगति को खोजा जा सकता है। मैं ध्यान करूं या और कुछ, अपनी चेतना को अपने आप से ओझल नहीं होने देता हूँ। इस भूमिका पर मुझे अपनी प्रवृत्तियों में किसी विसंगति की प्रतीति नहीं होती।" -और एक अन्तिम प्रश्न--अहमदाबाद आपको कैसा लगा? इस प्रश्न पर युवाचार्यश्री अपने अभिव्यक्ति के झरोखे खोलकर उसमें से झांकते हुए मानसिक प्रभाव को अनावृत करते हुए बोले---“अहमदाबाद में मिलों का धुआं है। चिमनिया धुआं उगलती रहती हैं। वायुमंडल में धुआं है । फिर भी यह एक विचित्र योग है कि जन-मानस अच्छा है, स्वस्थ है। उसमें जिज्ञासा है, ग्रहणशीलता है और अपेक्षाकृत असाम्प्रदायिकता है। ये सब बातें मन को आकर्षित करने वाली हैं। कुल मिलाकर ऐसा लगा कि गुजरात या अहमदाबाद की धरती पर कुछ वैशिष्ट्य है।" ___ इस आखिरी प्रश्न का उत्तर पाकर युवाचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर जब मैं उठी तो मेरे मस्तिष्क में विचारों का एक प्रवाह था- अहमदाबाद की कुछ बातें मन को आकर्षित करने वाली हैं। शायद इसीलिए युवाचार्यश्री यहां रुक रहे हैं। अन्यथा तो विशेष लाभ या उपयोगिता के नाम पर भी वे आचार्यवर की सन्निधि को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए। यह आकर्षण उन्हें कितने दिन तक बांधकर रख पाएगा? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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