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प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ० राजा रमन्ना और
अनेकान्त दर्शन देश के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं प्रतिरक्षा विभाग के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ० राजा रमन्ना आचार्यश्री से मिलने अणुव्रत विहार आए । आचार्यश्री का अभिवादन कर वे बैठ गए। आचार्यवर ने उनको जैन-दर्शन संबंधी सामान्य जानकारी दी । योग और प्रेक्षा ध्यान के संबंध में वे कुछ अधिक जानकारी प्राप्त करें, इस दृष्टि से आचार्यश्री ने युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ को निर्देश दिया । वे युवाचार्यश्री के पास पहुंचे।-संपादक]
डॉ० रमन्ना-“मुनिश्री । मैं जैन लॉजिक के बारे में समझना चाहता हूँ। अब तक ऐसा अवसर नहीं मिला । आज मेरी चिर-पालित अभिलाषा पूरी होने का समय उपस्थित हो गया है । आप मुझे सबसे पहले अनेकांत के बारे में कुछ बताइए।"
युवाचार्यश्री-“अनेकांत दृष्टि है । इसके द्वारा समूचे पदार्थ जगत् या विश्व को जाना जा सकता है । संसार में जितने पदार्थ हैं, वे सब अनन्त विरोधी-युगलों के पिंड हैं। एक विरोधी-युगल नहीं, अनन्त विरोधी-युगल प्रत्येक वस्तु में हैं। जसमें अनन्त-विरोधी-युगलों की सत्ता नहीं है, वह वस्तु ही नहीं हो सकती। सामान्यतः किसी भी वस्तु की विरोधी पर्याय सामने आती है, उसे असत्य मान लिया जाता है । उलझन का प्रारम्भ यहीं से होता है। भगवान महावीर ने विरोधी धर्मों वाली वस्तु को देखकर असत्य नहीं कहा, उसकी प्रकृति को समझा । महावीर जैसा व्यक्तित्व एक सार्वभौम नियम को असत्य ठहरा ही कैसे सकता था? ____ यहाँ दर्शन की धारा बदलती है। कुछ दार्शनिक विरोधी धर्मों को अपनी सहमति नहीं दे सके । उन्हें जहां-जहां विरोध की प्रतीत हुई, उसे छोड़ते चले गए
और अविरोध को स्वीकारते चले गए। विरोधी धाराओं में भी एक बिन्दु ऐसा होता है जहाँ भिन्न दिशाओं से बहकर आने वाली धाराएं मिल जाती है। उस
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