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मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि
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मनुष्य भी संस्कार की खूंटी से बंधा हुआ है । परिस्थिति उसे प्रभावित करती है पर उतनी मात्रा में जितनी मात्रा में संस्कार जमा हुआ है। फ्रायड ने चेतना के विभिन्न स्तरों का प्रतिपादन कर अन्तर्जगत की गुत्थियों को समझने का रास्ता खोल दिया है । मनोविज्ञान के माध्यम से कर्मवाद को समझना बहुत सरल हो गया है । संस्कार की व्याख्या अब सुगमता से की जा सकती है । चेतन मन के स्तर पर जो घटनाएं घटती हैं, वे प्रतिबिंब हैं । उनका बिंब इस स्थूल शरीर में नहीं हैं। इस शरीर के भीतर दो शरीर हैं— सूक्ष्म और सूक्ष्मतर । संस्कार का जन्म सूक्ष्मतर शरीर में होता है । वे भीतर ही भीतर पकते है । जब पककर तैयार हो जाते हैं तब वे भावतरंग का रूप लेकर हमारे मस्तिष्क और ग्रन्थितंत्र के माध्यम से प्रकट होते हैं । क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। आचरण जैसा होता है वैसा ही संस्कार बन जाता है । यह एक वलय है। आचरण संस्कार को जन्म देता है और संस्कार परिपक्व होकर आचरण आचरण को प्रभावित करता है । इस स्थिति में पहले किस पर ध्यान दें, यह प्रश्न है। आचरण पर ध्यान देना पहली आवश्यकता है। मनुष्य के आचरण के प्रति होने वाली जागरूकता गलत संस्कार के बीज - वपन से उसे बचा सकती है । इसलिए अप्रमाद पर बहुत बल दिया गया। जो सतत जागरूक या अप्रमत्त रहता है वह बुरे संस्कारों का बीज नहीं बोता और पुराने संस्कारों का शोधन कर डालता है। भगवान महावीर ने कर्मवाद के क्षेत्र में कुछ नये रहस्यों का उद्घाटन किया। उन्होंने संक्रमण के सिद्धांत का प्रतिपादन किया । बुरे भाव या आचरण के माध्यम से जो संस्कार संचित किए उन्हें अच्छे संस्कार के रूप में बदला जा सकता है अच्छे भाव और अच्छे आचरण के द्वारा । यह संस्कार- परिवर्तन का सिद्धांत अप्रमाद का सिद्धांत है। इसका विकास होने पर ही संस्कार - परिष्कार की संभावना की जा सकती है ।
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आज संस्कार-परिष्कार की चर्चा बहुत है और यह बहुत अच्छी बात है जिस दिन मनुष्य में संस्कार - परिष्कार का प्रयत्न श्लथ होता है, वह दिन मनुष्य के लिए सौभाग्य का दिन नहीं होता, विकास का दिन नहीं होता । परिष्कार की भावना और प्रयत्न ये दोनों आवश्यक हैं और वे चल भी रहे हैं। उनका संबंध परिस्थिति के साथ अधिक है, इसलिए परिवर्तन हो जाने पर भी परिष्कार नहीं हो रहा है, इसलिए परिवर्तन हो जाने पर भी परिष्कार नहीं हो रहा है, राजनैतिक और सामाजिक जीवन - प्रणालियां बदल जाती हैं, किन्तु आन्तरिकता बदले बिना
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