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प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. राजा रमन्ना और अनेकान्त दर्शन ___ डॉ. रमन्ना—“विज्ञान के अधिकांश नियम परिवर्तनशील हैं। नया तत्त्व ज्ञात होते ही पुरानी धारणाएं बदल जाती हैं। किन्तु जब तक वह अज्ञात रहता है, उसका खंडन होता है।"
युवाचार्यश्री-"हमारे यहां सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि काम का उचित मूल्यांकन नहीं होता। प्राचीन समय में यहां इतनी खोजें हुई हैं पर उन पर शोधकर्ताओं को वैज्ञानिक नहीं कहां गया। कुछ वर्षों तक एक हिन्दुस्तानी लहर थी कि वे अपने बुजुर्गों को अल्पज्ञ मानते थे। प्राचीनकाल में ऋषि-मुनियों ने भी कुछ नयी खोजें की और नये तथ्य संसार के सामने रखे । पर हमारी दूसरी कठिनाई यह है कि उस समय की भाषा और परिभाषा पकड़ में नहीं आती। आज वैज्ञानिक कहते है कि पोजेटिव और नेगेटिव दोनों के योग से विद्युत् उत्पन्न होती है । और भी अनेक काम होते हैं। यह बात भी बहुत पुरानी है, पर पकड़ में नहीं आयी थी। जैन दर्शन में दो शब्द हैं--स्निग्ध और रुक्ष । चिकना
और रूखा५ ये दोनों शब्द पोजिटिव और नेगेटिव के प्रतीक हैं। बहुत पुरानी हैं यह धारणा, किन्तु इसकी वैज्ञानिक खोज इसी शताबादी में हुई।
कार्यकारणवाद भी एक नियम है, पर यह भी सापेक्ष है । कुछ दार्शनिक कार्य और कारण का निश्चित संबंध मानते हैं । अनेकांत की दृष्टि से इस संबंध की अनिवार्यता नहीं हैं । सामान्यत: हर कार्य कारण की अपेक्षा रखता है, पर कुछ कार्य ऐसे भी हैं जो निर्निमित्त्क हैं । उपादान कारण वस्तु का स्वरूप है, इसलिए वह तो रहता ही है, निमित्त करण जरूरी नहीं हैं।
इस लम्बी चर्चा में हमने जितने तथ्यों का स्पर्श किया है, प्रतिपदन किया है, वह सारा सापेक्ष प्रतिपादन है, इसलिए इसे मानकर चलने में कोई कठिनाई नहीं आती । सत्य और असत्य के साथ न तो ऐकान्तिक आग्रह होना चाहिए और न ही होना चाहिए वैचारिक संघर्ष । यह जैन दर्शन की अपनी मौलिक देन है। इस संबंध में और कुछ ज्ञातव्य हो तो पूछे।"
डॉ० रमन्ना इतने कोणों से अनेकांत की चर्चा सुनकर आत्मविभोर हो उठे। उन्हें अपने जीवन में पहली बार यह मौका मिला था। वे अब प्रश्न पूछकर विषय को मिश्रित करना नहीं चाहते थे। उत्यन्त संतुष्ट होकर प्रसन्न मन से वे उठे और आचार्यश्री के पास पहुंचकर बोले--"बहुत वर्षों से मेरी इच्छा थी कि मैं जैन लॉजिक के बारे में समझू, पर अब तक कभी अवसर ही नहीं मिला। आज मैं
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