Book Title: Meri Drushti Meri Srushti
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 163
________________ १६१ यथार्थ विज्ञान : जीवन विज्ञान नहीं, अनुभव और प्रयोग सिद्ध बात है। हमने अपने पर और अनेक व्यक्तियों पर परीक्षण किया है और देखा है कि किस प्रकार व्यक्ति सन्तुलित और सामान्य बन जाता है। आज धर्मगुरु की अपेक्षा शिक्षक पर ज्यादा जिम्मेदारी है । क्योंकि विद्यार्थी शिक्षक के नजदीक ज्यादा है । सारा दायित्व शिक्षा पर है । यदि शिक्षा के द्वारा यह भावनात्मक विकास नहीं हो सकता तो व्यक्ति, समाज, राष्ट्र का क्या होगा, यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है । जीवन विज्ञान के क्षेत्र में यह परिकल्पना है कि योग समवाय के द्वारा ऐसा कुछ किया जाए। शिक्षण संस्थाएं तो बहुत लम्बा समय लेती हैं। हम जिस प्रयोग की बात कर रहे हैं, वह मात्र तीस-चालीस मिनट का है। एक प्रयोग कराया जाए पांच दिन और एक दिन केवल सैद्धान्तिक बात बतलाई जाए। एक वर्ष बाद इसका सर्वेक्षण किया जाए तो निश्चय ही इसके परिणाम चौंकाने वाले होंगे। अवचेतन मन की सुप्त शक्तियों को जागृत किया जा सकता है । हिन्दुस्तान के आदमी में काफी क्षमता है। उसकी शक्ति, सामर्थ्य और कुशलता का लोहा सारी दुनिया मानती है। किन्तु यहां का आदमी बहुत चरित्रवान होता है, यह धारणा अभी नहीं बन पायी है। हम अपने जीवन को बदलें, केवल सैद्धान्तिक तौर पर नहीं, प्रायोगिक तौर पर । जीवन विज्ञान का यह प्रयोग सामाजिक सम्बन्धों का महत्वपूर्ण प्रयोग है । इसके बिना समाज में मानवीय मूल्यों की स्थापना होना असम्भव है। भावात्मक, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की बात सधने से ही सामाजिक स्वास्थ्य सध सकता है । जीवन विज्ञान किसी धर्म-सम्प्रदाय से संबंधित नहीं है। यह मात्र विद्या की एक शाखा है । मैं चाहता हूँ कि इसका विकास शिक्षा-शाखा के रूप में होना चाहिए । बौद्धिक विकास के साथ ही भावना का विकास भी होना चाहिए । अध्यात्म, सद्भावना, सहिष्णुता, प्रेम व एकता के भाव का सन्तुलित विकास होना चाहिए। आचार्यप्रवर ने विद्वानों की गोष्ठी में कहा था कि लोग शिक्षा-प्रणाली को गलत कहते हैं; मैं यह नहीं मानता, क्योंकि इसी शिक्षा-प्रणाली ने योग्य डॉक्टर, इंजीनियर, राजनयिक, उच्चकोटि के विद्वान एवं राष्ट्रोन्नति के लिए अनेक योग्यतम व्यक्ति दिए हैं। बौद्धिक विकास हुआ है किन्तु चरित्र-विकास की ओर हमारा ध्यान नहीं गया । बीज बोया ही नहीं गया तो फल की प्राप्ति कैसे होगी? विद्यार्थी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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