Book Title: Meri Drushti Meri Srushti
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 159
________________ विसोधन की प्रक्रिया : प्रेक्षा ध्यान १५७ होगा । आज का मनुष्य आधि, व्याधि, उपाधि और समाधि के चौराहे पर खड़ा है । हमारी सारी बीमारियां आती हैं भावनात्मक शरीर से, फिर वे क्रमशः आधि और व्याधि के रूप में परिलक्षित होती हैं । आधि-व्याधि से परे की स्थिति है I समाधि । जीवन में समाधि का अवतरण तभी होगा जब व्यक्ति आधि, व्याधि और उपाधि से मुक्त होगा। एक कर्मशास्त्र का वेत्ता कर्म सिद्धान्त को जानता है और आधुनिक मेडिकल साइंस इसको स्वीकार करती है । यदि दोनों की तुलनात्मक व्याख्या करें तो निष्कर्ष में कोई अन्तर अनुभव नहीं होगा । भाव का परिष्कार करना तथा अन्तःस्रावी ग्रंथियों के अन्त स्राव को बदलना एक ही बात है । हमारे शरीर में ग्रंथियों का क्या कार्य है, उनका शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह बात एक डॉक्टर अच्छी तरह जानता है । किन्तु वह उसे बदलने की प्रणाली नहीं जानता । ध्यान के द्वारा अन्तःस्रावों को कैसे बदला जा सकता है, भाव- परिष्कार कैसे किया जा सकता है ? यदि हम यह जान लें तो जीवन में बहुत कुछ परिवर्तन घटित हो सकता है । फिर किसी को यह शिकायत भी नहीं रहेगी कि जीवन में अशांति है, भय है तनाव है। इससे चारित्रिक मूल्यों की प्रतिस्थापना होगी और साथ-साथ व्यक्तिहित, समाजहित और राष्ट्रहित में बहुत बड़ा काम होगा । आयुर्वेद और प्रेक्षा ध्यान I आयुर्वेद का विकास अध्यात्म की प्रज्ञा से हुआ है । धन्वंतरी ने अपनी अन्तः स्फुरित प्रज्ञा से ही आयुर्वेद का विकास किया था । मेरे शास्त्रीय अध्ययन में आयुर्वेद के ग्रंथों की गहरी पृष्ठभूमि है । बहुत बार शास्त्रीय रहस्यों को पकड़ने में आयुर्वेद के ग्रंथ मेरे सहयोगी बने हैं । चिकित्सा की दृष्टि से शारीरिक चिकित्सा के साथ-साथ मानसिक चिकित्सा का भी यह एक महत्तवपूर्ण प्रसंग है। आध्यात्मिक चिकित्सा का इसमें बहुत बड़ा भाग है । हमारी अधिकांश शारीरिक बीमारियां भावना से जुड़ी हुई हैं । अतः चिकित्साशास्त्र को कभी भी अध्यात्म से अलग नहीं किया जा सकता। बहुत बार अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं भी रूढ़ बन जाती है। आयुर्वेद भी उस रूढ़ता का शिकार हुआ है। आयुर्वेद ने कभी बहुत बड़े सत्य का उद्घाटन किया था, पर अब उसके साथ अनुसंधान की प्रवृत्ति नहीं रही । आज बहुत सारे वैद्य भी एलोपैथिक दवाओं की पुड़िया बनाकर अपना काम निकालते हैं । ऐसे समय में प्रेक्षा ध्यान और अणुव्रत का बहुत बड़ा संबंध हो जाता है । कल एक अच्छे डॉक्टर मेरे पास आए। उन्होंने कहा- मैं एलोपैथिक 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International


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