Book Title: Meri Drushti Meri Srushti
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 153
________________ प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. राजा रमन्ना और अनेकान्त दर्शन १५१ दूसरी ओर हम देखते हैं कि परमाणु बहतु उपयोगी नहीं होता। परमाणुओं का समवाय बढ़ता जाता है । स्कन्ध बनते ही उनका उपयोग शुरू हो जाता है। पौद्लिक जगत् में यह भेद और अभेद का नियम बिलकुल स्पष्ट है। जैन दर्शन में केवल पौद्लिक, भौतिक या परमाणु-जगत् का अस्तित्व ही नहीं है। वह अभौतिक जगत् का भी अस्तित्व स्वीकार करता है। वहां केवल अचेतन का ही नहीं, चेतन का भी मूल्य है । चेतन से अचेतन भिन्न है । भौतिक से अभौतिक भिन्न है। भिन्नता की स्थिति में एक ही नियम के द्वारा विश्व की व्याख्या नहीं हो सकती। अथवा यह कहा जा सकता है कि विश्व भी दो अलग अलग हो जाएंगे। जबकि जगत् है एक । इस स्थिति में भेदाभेद के नियम का अपना अतिरिक्त मूल्य हो जाता है । दूसरे दार्शनिक भी अचेतन और चेतन-इन दो तत्त्वों को स्वीकार करते हैं। किन्तु अचेतन को अभौतिक स्वीकार करने वालों में सबसे पहले कदम उठाने वाला जैन-दर्शन है । तत्त्व अचेतन है, पर भौतिक नहीं, यह बात किसी समय में आश्चर्य जैसी लगती थी किन्तु आज तो यत्र-तत्र वैज्ञानिकों को भी ऐसे कण उपलब्ध हो गए हैं, जो भौतिक नहीं हैं । यद्यपि उसकी व्याख्या के साथ जैन-दर्शन की सहमति नहीं है। क्योंकि भौतिक तत्त्व की वैज्ञानिक परिभाषा है स्थूलता। पर ऐसे पुद्गल भी होते हैं जिनमें स्थूलता का लक्षण घटित नहीं होता। वे पुद्गल भारहीन हैं, अगुरुलघु हैं। ऐसे पुद्गल चतु:स्पर्शी होते हैं। ___पुद्गल के अतिरिक्त भी ऐसे तत्त्व हैं, जो अचेतन हैं, पर भौतिक नहीं हैं। उनमें दो तत्त्वों की खोज विज्ञान द्वारा हो चुकी हैं। जहां तक इनका अस्तित्व है, गति और स्थिति वहीं तक है । आकाश तत्त्व भी अचेतन है किन्तु अभौतिक है। अभौतिक तत्त्व में संश्लेष और विश्लेष की प्रत्रिया नहीं है, संयोग और वियोग नहीं हैं। चेतन तत्त्व अभौतिक भी है और चैतन्य-सम्पन्न् भी । इसलिए पुद्गल और चेतन में संबंध न हो तो न चेतन की व्याख्या हो सकती है और न अचेतन की। ___ द्रव्यतत्व और अस्तिव-इन दो सूत्रों से चेतन और अचेतन दोनों पदार्थ जुड़े हुए हैं। इनमें भी बड़ा सूत्र है अगुरुलघुत्व । अस्तित्व अनस्तित्व में न बदले इसका नियामक तत्त्व अगुरुलघुत्व है। प्रत्येक वस्तु में एक ऐसा पर्याय काम करता है, जिससे द्रव्य या वस्तु प्रथम क्षण अपना अस्तित्व रखता है और दूसरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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