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संवेदनशीलता : एक अपेक्षा
१३१ मैंने आचार्यश्री को बहुत निकट से देखा है, सुना है । मैं कह सकता हूँ कि आचार्यश्री धर्म के झूठे आश्वासनों को तोड़ रहे हैं। राजनैतिक आश्वासनों पर भरोसा नहीं । सामाजिक कार्यकर्ताओं पर भरोसा नहीं। किन्तु भारतीय जनता को धर्म के आश्वासन पर भरोसा है। धर्म के द्वारा परलोक को सुधारने का आश्वासन मिलता है। वर्तमान की बात छोड़ दें। उसकी चिन्ता भी लोगों को नहीं है । परलोक सुधारने की चिन्ता है । आचार्य तुलसी इस आश्वासन को तोड़ रहे हैं। 'लोग पूछते है' कि धर्मक्रान्ति का स्वरूप क्या होगा? आचार्य तुलसी ने जिस धर्म क्रान्ति की बात की, उसका पहला चरण यही है कि जिसको आश्वासन मान बैठे हो, उस भ्रान्ति को तोड़ डालो । उस आश्वासन को समाप्त कर दो।
आज हम धर्म से चित्त की शुद्धता, पवित्रता नहीं मांग रहे हैं। हमारा आश्वासन यह है कि धर्म करो, परिवार सुखी होगा, बीमारी नहीं आएगी और पैसा खूब मिलेगा। यह है हमारे धर्म की अवधारणा । ज्योति पर इतनी राख आ गई कि उसका कहीं साक्षात्कार भी नहीं हो रहा है। आचार्य तुलसी ने इस आश्वासन को तोड़ने का भरपूर प्रयास किया है । आचार्य तुलसी ने, युग के साथ जो अपने को नास्तिक मान बैठे थे, उन्हें आस्तिक घोषित कर दिया । आज आचार्य तलसी ने नास्तिकों की कतार खड़ी कर दी है। __बन्धुओ। जरूरत है तीसरे नेत्र की । मिले कैसे? एक छोटा-सा लड़का भीख मांग रहा था। एक भाई ने कहा—यह लो एक रुपया देता हूँ। पर एक बात पूछना चाहता हूँ। तुम अभी छोटे हो । बच्चे हो । लोगों से पैसा मांगते हो। आंख क्यों नहीं मांग लेते?
उस भिखारी लड़के ने बहुत ही मार्मिक उत्तर दिया । उसने कहा— 'बाबूजी। लोगों के पास पैसा है, इसीलिए पैसा मांग लेता हूँ। आंख उनके पास है कहां जो उनसे मांगू ।' सबसे बड़ी समस्या है चक्षु की, आँख । तीर्थंकर के लिए कहा गया कि वे चक्षुदान देने वाले हैं। सबसे बड़ा व्यक्ति वह होता है, जो चक्षुदान देता है। आंख की जरूरत है आज के संसार में । इन नेत्रों से काम चलने वाला नहीं है । तीसरे नेत्र की जरूरत है । अतीन्द्रिय चेतना का विकास यानी तीसरे नेत्र का जागरण । जब तक वह नहीं होगा तब तक आचार्यश्री तुलसी का अभिनन्दन करने में हमें विसंगतियों का ही अनुभव होता रहेगा।
सामाजिक क्षेत्र हो, आर्थिक क्षेत्र हो, धार्मिक क्षेत्र हो, कोई भी क्षेत्र हो, उस पर आज पुनर्विचार करने की जरूरत है । धार्मिक क्षेत्र में तो सबसे अधिक विचार
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