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संवेदनशीलता : एक अपेक्षा हमारी कोई दूसरी समस्या नहीं है । समस्या व्यक्ति स्वयं है । हमारी प्रवृत्ति हो गई है कि हम समस्या दूसरे में देखते हैं, दूसरे में अनुभव करते हैं, अपने आप में समस्या का अनुभव नहीं करते जबकि सारी समस्याओं का बिन्दु व्यक्ति स्वयं बना हुआ है। व्यक्ति ही सबसे बड़ी समस्या है। अगर हम इस समस्या के समाधान तक पहुँच जाएं तो शायद बाहर की काल्पनिक समस्याओं में जाने की जरूरत भी नहीं होगी। कहा जाता है कि लोग दुःख का अनुभव करते हैं और उसका समाधान चाहते हैं। लोग दुःख का अनुभव कहां करते हैं ? अगर दुःख का अनुभव करते तो दुःख छूट जाता । आदमी इतनी गहन मूर्छा में बैठा है कि वह अनुभव ही नहीं करता कि मैं बीमार हूँ । बीमार अपने आपको अनुभव नहीं करता। जिस दिन वह ऐसा अनुभव करने लग जाए तो स्वस्थ बनने में विलम्ब नहीं होगा।
मैं तीसरे नेत्र में विश्वास करता हूँ। देखने के लिए दो आँखे हैं। आँखों का काम हमारे सामने है । यहाँ से सारी समस्याएं पैदा हो रही हैं। एक आँख का काम है प्रियता का संवेदन और दूसरी आंख का काम है, अप्रियता का संवेदन। हमारी दुनिया समाप्त । इससे आगे हमारी कोई पहुँच नहीं है। हमारे जगत् की सीमा है प्रियता और अप्रियता का संवेदन । हम यदि समस्या के समाधान की बात करें, बीमारी को समाप्त करने की बात करें तो हमें इस बात पर भी विचार करना होगा कि हमें तीसरा नेत्र चाहिए । तीसरी आँख चाहिए । जब तक आदमी का तीसरा नेत्र नहीं खुलेगा, तब तक बन्धुओ, समस्या का समाधान नहीं होगा। . कितना प्रयास हो रहा है । सारी सरकारें जनता की समस्याओं को सुलझाने के लिए उलझ रही हैं। कितने अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, समाजसेवी समस्या को सुलझाने में लगे हुए हैं। कितने धर्म-गुरु समस्या को सुलझाने के लिए तत्पर हो रहे हैं। किन्तु समस्या उलझती ही चली जा रही है। कारण स्पष्ट है कि जब तक मनुष्य का तीसरा नेत्र नहीं खुलेगा, तब तक समस्या का समाधान नहीं होगा। स्थिति तो यह है कि समस्या को सुलझाने वाले स्वयं उसमें उलझे हुए हैं । अपेक्षा
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