Book Title: Meri Drushti Meri Srushti
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 132
________________ १३० मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि है कि तीसरा नेत्र खुले और हम यथार्थ का अनुभव कर सकें। व्यक्ति और समाज दोनों हमारे सामने हैं। व्यक्ति समाज से अपने आपको स्वतन्त्र मान बैठा है और समाज को व्यक्ति की चिन्ता नहीं है। बड़ी उलझन है। आज की सबसे बड़ी समस्या है व्यक्तिवादी मनोवृति का विकास। हमारा घोष समाजवाद का है किन्तु हम बन रहे हैं व्यक्तिवादी । कितना स्वर्थ ? परमार्थ से तो हमारा पीछा ही छूट गया। परमार्थ से कोई सम्बन्ध ही नहीं रहा । न जाने कितने धर्म के आचार्य फिर वे जैन आचार्य हों, बौद्ध आचार्य हों, वेदान्त के आचार्य हों, अध्यात्म और परमार्थ की गाथाएं गाने वाले हों, किन्तु आज तो लगता है कि परमार्थ बहुत पिछड़ गया। आज व्यक्ति व्यक्तिवादी बन गया और सारा दृष्टिकोण व्यक्तिवादी बन गया। इस स्थिति में सबसे बड़ा उपाय है अध्यात्म-चेतना का जागरण । मैं मानता हूँ कि युग-चेतना का जागरण भी आज यही है । आचार्य तुलसी युगप्रधान आचार्य हैं, युगद्रष्टा हैं, युग को बदलने वाले तथा देखने वाले हैं। जो व्यक्ति युग को बदल सकता है, वह युग की धारा को बदल सकता है। आज कोई भी व्यक्ति आए, किन्तु आध्यात्मिक चेतना को जगाए बिना युग की धारा को नहीं बदल सकता। छोटे आदमी से लेकर उच्चतम सत्ता में बैठे आदमी तक में भी स्वार्थ काम कर रहा है । पहले स्वार्थ अपने घर-परिवार तक ही सीमित था, किन्तु अब स्वार्थ बहुत व्यापक बन गया है। दल के लिए स्वार्थ, पार्टी के लिए स्वार्थ, सब चीज के लिए स्वार्थ । इस स्वार्थ के वातावरण में एक आचार्य का अभिन्नदन क्या कोई विसंगति वाली बात नहीं है? मैं अभिनन्दन करने वालों से पूछना चाहता हूँ । जो लोग स्वागत करने के लिए तैयार हैं, जिन्होंने स्वागत किया है, वे लोग कहीं विरोधाभास को तो नहीं पाल रहे हैं? कहीं विसंगति को तो पैदा नहीं कर रहे हैं? हमारे जीवन में एक सामंजस्य होना चाहिए। स्वयं से प्रश्न पछना है कि क्या किसी आचार्य का अभिनन्दन करने में कोई तुक है, संगति है ? मुझे तो समाधान नहीं मिलता। बोलना और कहना भी एक धन्धा बन गया है। उपदेश सुनने वालों की कमी नहीं। वे तो पूरी तरह अपना अधिकार जमाए हुए हैं। पहले तो शायद उपदेश देने का अधिकार धर्म-गुरुओं को ही था, आज तो वह अधिकार इतना व्यापक हो गया कि वर्तमान का सबसे बड़ा, उपदेशक राजनेता बन गया। बड़ी समस्या पैदा हो गई। इस स्थिति में अपेक्षा है पुनर्विचार की। आचार्य तुलसी का यहां आना, चाहे और कहीं जाना, एक उद्देस्य से होता है और वह है पुनर्विचार । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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