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मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि है । यानी शस्त्र का निर्माण शान्ति के लिए किया जा रहा है । जब संतुलन रहेगा तो युद्ध नहीं होगा। जब वह शक्ति-संतुलन बिगड़ जाएगा-एक राष्ट्र शस्त्रों का अंबार लगाएगा, दूसरा पिछड़ जाएगा तो युद्ध छिड़ेगा। यह शक्ति-संतुलन ही विश्व-शान्ति का सबसे बड़ा आधार है। कितना सुन्दर तर्क है यह तथाकथित शान्ति के समर्थकों का। हिंसा के समर्थन में इतने तर्क, प्रयोग, इतनी खोजें जो आदमी कर रहा है, उसकी तुलना में तो बेचारी अहिंसा दयनीय-सी एक ओर खड़ी है।
_अहिंसा का प्रश्न समूची मानव जाति से संबद्ध है । अहिंसा की केवल दुहाई देने से कुछ नहीं होगा। प्रयोगात्मक रूप से इस पर कुछ करने की अपेक्षा है। या तो कुछ करें, नहीं तो इस पर सोचना ही छोड़ दें, धोखा तो नहीं होगा कम-से-कम । अहिंसा को धोखा देना सारे संसार की मानव जाति को धोखा देना
है।
इस सारी स्थिति से बचने के लिए परिकल्पना की गई है कि अहिंसा के क्षेत्र में कुछ सक्रिय प्रयोग किया जाए। कुछ क्रियात्मकता हो, केवल पुराने पाठों को न दोहराया जाए। यह अहिंसा सार्वभौम की परिकल्पना आज उपस्थित हो रही है उस पुण्यभूमि में जहाँ यह स्वर कभी गुंजित हुआ था । अहिंसा सार्वभौम इस परिकल्पना के साथ जो नया कार्य शुरू कर रहा है, वह अहिंसा के गीत गाने का नहीं होगा, बल्कि अहिंसा की तेजस्विता की पृष्ठभूमि में मानवीय गुणों का, मानवीय सम्बन्धों के विकास की प्रक्रिया का होगा।
इस अवसर पर मैं बड़ी गंभीरता के साथ अनुभव कर रहा हूँ कि आज का दिन अहिंसा के इतिहास में फिर एक नया दिन होगा। जिस प्रकार गांधी जी ने जो प्रयोग दिए, जैसे असहयोग, प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास, सविनय अवज्ञा आदि, ये सब नई अवधारणाएं थीं, इनसे अहिंसा तेजस्वी बनी थी । मेरा विश्वास है कि अहिंसा में विश्वास करने वाले लोग इस सन्दर्भ में गंभीरता से चिन्तन करेंगे और अपनी अधिक-से-अधिक शक्ति का इसमें नियोजन करेंगे।
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