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नया जन्म लें
१३५ नहीं जा सकता । मैं तो कभी-कभी सोचता हूँ कि यदि यह भिन्नता दुनिया से मिट जाए तो यह दुनिया इतनी कुरूप हो जायेगी कि इसे देखने को किसी का मन नहीं करेगा। भिन्नता होना बहुत आवश्यक है हमारे सौन्दर्य के लिए। भेद के आधार पर ही सत्यं, शिवं, सुन्दरं की परिकल्पना की जा सकती है। बगीचे में एक ही प्रकार के फूल-पौधे हों तो वे किसी को आकर्षित नहीं कर सकते। भेद कोई बुरा नहीं । वह बुरा तब बनता है जब हम निरपेक्ष बन जाते हैं । महावीर ने इस समस्या के समाधान के लिए सापेक्षता का दर्शन दिया। हर आदमी एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है । न केवल आदमी बल्कि प्रत्येक पदार्थ एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। हमारी विचार-तरंगें, हमारी वाणी की तरंगे, संसार की तरंगों से जुड़ी हुई हैं। आदमी कहीं से कटा हुआ नहीं है । दुनिया में ऐसी कोई शक्ति नहीं जो पदार्थ को तोड़ सके, भिन्न कर सके । सारा विश्व एक श्रृंखला में जुड़ा हुआ है । इसी आधार पर आचार्य उमास्वामी ने लिखा था-'परस्परोपग्रहो जीवानाम्', जीव का स्वभाव है एक-दूसरे का आलम्बन बनना, सहारा बनना । यह 'स्ट्रंगल फार सरवाइवल' या 'स्ट्रगल फॉर एक्जिसटेंस' वाली बात अहिंसा के क्षेत्र में मान्य नहीं हो सकती। आदमी ने अहिंसा के आधार पर विकास किया है, एक-दूसरे के अस्तित्व को स्वीकर करने के आधार पर विकास किया है।
आज की यह विचारधारा बन गई है कि 'या मैं या तुम' । या तो पूंजीवाद या साम्यवाद । दोनों साथ नहीं चल सकते । संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना इसीलिए हुई कि विरोधी विचारधारा वाले राष्ट्र भी एक साथ रह सकें, विकास कर सकें। पं० नेहरू,और डॉ० राधाकृष्णन ने महावीर जयन्ती के अवसर पर कहा था-आज यह जो पूरा लोकतंत्र जीया जा रहा है, महावीर के आधार पर जीया जा रहा है ।
वर्तमान की समस्या के समाधान के लिए हमारी दृष्टि वर्तमान पर ही न रहे, वह पीछे की ओर भी जाए । अतीत में भी हमारी समस्या के बहुत से समाधान छिपे हुए हैं। उनका साक्षात्कार करें । महावीर जन्म-जयन्ती के दिन हम भी नया जन्म लें। नया जन्म लेकर आगे बढ़ें, तभी महावीर जयन्ती मनाना सार्थक होगा और हमारा नया जन्म भी बहुत मूल्यवान बन जाएगा।
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