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मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि पर समाज का जीवन चलता है । शाश्वत नियमों की अवहेलना कर मनुष्य अपना कानून, अपना विधान और अपनी आचार-संहिता बनाता है, तब वास्तव में समस्याएं पैदा होती हैं। जो लोग इन शाश्वत नियमों को मानकर चलते हैं, उनके लिए समस्याएं पैदा ही नहीं होती । मैं मानता हूं धर्म और कुछ नहीं, एक शाश्वत नियम की व्याख्या है । धर्म जागतिक नियम है, सार्वभौम नियम है । इस नियम की कोई अवहेलना प्रकृति में नहीं होती । इस नियम के आधार पर यदि हमारे जीवन की यात्रा चले तो रोटी की समस्या पैदा नहीं होगी। हमने कृत्रिम समस्याएं पैदा की हैं । समस्या वास्तव में कृत्रिम हैं। मूल समस्या है मन की समस्या, इन्द्रियों की उच्छंखलता, कषाय की प्रबलता, रागद्वेष और स्वामित्व की भावना तथा अहंकार की प्रबलता-ये ही वास्तव में सारी समस्याएं हैं। यदि इन समस्याओं का समाधान होता है तो यथार्थ लगने वाली समस्याएं अपने आप सुलझ जाती है, किन्तु हमने द्वयं को सुलझाने का प्रयत्न किया, प्रथम की ओर ध्यान नहीं दिया। एक महान् इतिहासकार ने लिखा है कि रोटी की समस्या में यदि मनुष्य डूबा रहे तो यह सबसे बड़ी मूर्खता होगी । समस्या तो वास्तव में दूसरी है । एक महायुद्ध होता है और भयंकर बीमारी की स्थिति आ जाती है। सब लोग जानते हैं कि द्वितीय महायुद्ध नहीं हुआ था तब पदार्थों की कीमतें क्या थीं और कितनी समस्याएं थीं तथा द्वितीय महायुद्ध के बाद कितनी समस्याएं आयीं। द्वितीय महायुद्ध के पूर्व एवं उत्तरकालीन लोग जानते हैं कि कितना अन्तर आया है मूल्यों में और परिस्थितियों में । एक बार युद्ध होता है तो हजारों कठिनाइयां पैदा हो जाती है। हम गहराई से चिन्तन करें कि वास्तव में समस्या मानसिक है या रोटी की समस्या है? मानसिक समस्या का समाधान धर्म हो सकता है, महावीर हो सकते हैं, समाजवादी और साम्यवादी प्रणालियां कभी नहीं हो सकतीं।। ___ आज के संसार में सबसे बड़ी समस्या है—भय की समस्या । एक है असहिष्णुता की समस्या, उत्तेजना की समस्या और दूसरी है भय की समस्या, बीमारी से समस्या । इन बढ़ती हुई बीमारियों से डॉक्टर परेशान हैं । आज कितना फैला है डॉक्टरों का जाल । पुराने जमाने में इतने वैद्य और डॉक्टर कहां थे? मुश्किल से बड़े गांवों में एक मिलता और छोटे गांवों में तो होता ही नहीं था। कहां थीं इतनी दवाइयां और कहां थे इतने साधन? तो फिर साथ-साथ चलना होगा । बीमारियां नहीं थीं क्योंकि बीमारियों के कारण नहीं थे। यद्यपि पानी साफ नहीं था, और भी पदार्थ अच्छे नहीं रहे होंगे, फिर भी मनुष्य की रोग-प्रतिरोधक
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