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मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि के परिवर्तन के बिना अनुशासन आ सके, इसकी कतई सम्भावना नही है । हम वैज्ञानिक दृष्टि से सोचे कि हमारे व्यवहार का नियंत्रण कौन कर रहा है? पहले यह माना जाता था कि सारा नियंत्रण मस्तिष्क के द्वारा होता है और उसे प्रधानता दी गई । हमारी शिक्षा में मूल आधार मान लिया गया कि मस्तिष्क का विकास, बुद्धि का विकास करना चाहिए। किन्तु आज तो बात बहुत साफ हो गई है कि कोरा बुद्धि का विकास ही पर्याप्त नहीं है । हमारी शिक्षा का काम है बुद्धि को प्रखर बना देना । पर आपको यह भी पता होना चाहिए कि बुद्धि जैसे-जैसे तेज होती है, हमारी तर्कशक्ति प्रबल होती है। ऐसा होने से हमारे भीतर लड़ने की क्षमता और बढ़ जाती है। आज की अपराधी मनोवृत्ति, हिंसा की मनोवृत्ति, लड़ने की मनोवृत्ति का जो विकास हो रहा है वह हमारी बुद्धि की पैनी धारा के द्वारा हो रहा है। आज इस बात की जरुरत है कि हमारी चेतना जागे । चेतना को जगाने की जरुरत है। बात तो अनुशासन की करते हैं पर लगता है कि मूर्छा का वातावरण इतना घना है कि कोई चेतना की बात करता है तो हम उसे स्वीकार करने की मुद्रा में नहीं होते हैं।
एक आदमी बहत बीमार था। मर्छित हो गया। लगा कि मर गया। डॉक्टर को बुलाया गया। उसने नाड़ी देखी, ह्रदय की धड़कन देखी। उसे लगा कि रोगी मर गया । रोगी जी रहा था। उसने साहस बटोरकर धीरे से कहा-मैं मरा नहीं जिन्दा हूं । कम्पाउंडर पास मे ही खड़ा था । उसने गुस्से में कहा—डॉक्टर ज्यादा जानता हैं कि तुम ज्यादा जानते हो? जब डॉक्टर कह रहा है कि तुम मर गये हो, तो तुम्हारे कहने से क्या होता है ? - कभी-कभी बड़ी विचित्र स्थिति बन जाती है। हम सच्चाई को स्वीकार कने के लिए तैयार ही नही होते । सच्चाई को हम नकारते चले जाते हैं। परिस्थिति की दुहाई देकर हम समस्या को और अधिक उलझाते चले जाते हैं। जब तक हम मूल तक नहीं जाएंगे, तब तक कोई बात नहीं बनेगी। अनुशासन आएगा कहां से? जब हम अनुशासन की विपरीत दिशा में चल रहे हैं तो अमुशासन कहां से आएगा? हम अमुशासन वर्ष तो जरुर मनाएं किन्तु आत्मानुशासन तक पहुंचने का प्रयास करे । सत्ता का अनुशासन, राज्य का अनुशासन काम का तो होता है, किन्तु अन्त तक हमें पहुंचा नहीं सकता। अनुशासन की स्थापना के लिए हमें आत्मानुशासन जगाना ही होगा। बिना आत्मानुशासन जागे अनुशासन की प्रतिष्ठा नहीं हो सकती है।
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