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मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि
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अनुत्तरित को उत्तरित करना मुझे जरुरी नही लगा । मेरे पिता का साया मुझ पर से बहुत जल्दी उठ गया था । मैं ढाई मास का था तब उनका स्वर्गवास हो गया था । यदि कहूं तो बात अस्वाभाविक लगती है । पर मेरी स्मृति कहती है कि मैंने उन्हें मृत्यु शैया पर देखा है। भाई कोई था नहीं । दो बहनें थी । दोनों विवाहित । हमने पूज्य कालूगणीजी के दर्शन करने का निश्चय किया । हम गंगाशहर पहुंचे । पुज्य कालूगणीजी के दर्शन किये। उनके प्रदीप्त मुखमंडल की आभा और उनकी वह मुद्रा अब भी मेरी स्मृति में वैसी ही अंकित है। मुनि मूलचंदजी ने कहा था— 'वहां तुम मुनि तुलसी के दर्शन जरुर करना । वे आयु में छोटे है, पर बहुत भाग्यशाली है । उन पर पूज्य कालूगणी की असीम कृपा है।' मैंने वहां पूछा - 'मुनि तुलसी कहां है ?' एक भाई ने बताया- 'वे छत पर बैठे हैं।' मैं वहां गया, दर्शन किए। एकटक उनके सामने देखता रहा । उन्होंने पूछा- 'कहां से आए हो ?' 'टमकोर से आया हूं-- मैंने उत्तर दिया। मौखिक प्रश्न और उत्तर बहुत नहीं चला, परन्तु मूक प्रश्नोत्तर बहुत चला और वह गहरे मे उतर गया । हमनें दीक्षा के लिए प्रार्थना की और उसकी पूर्व स्वीकृति मिल गई । उस दिन वहां रुके और फिर गावं चले आए।
टमकोर एक छोटा गांव है । उस समय वहां कोई राजकीय विद्यालय नहीं था। मैं गुरु जी की पाठशाला में पढ़ा । वर्णमाला पढ़ी, कुछ पहाड़े पढ़े और कुछ विशेष पढ़ने का योग नहीं मिला । ग्यारहवां वर्ष आधा बीता । माघ शुक्ला दसमी, वि० सं० १९८७ के दिन पुज्य कालूगणी का वरदहस्त हमारे सिर पर टिका । मै अपनी माता के साथ दिक्षित हो गया । हमारी दीक्षा भंसालीजी के बाग में हुई। वहां से प्रस्थान कर पूज्य कालूगणी गधैयों के नोहरे में आए। वही उनका प्रवास था । वहां पहुंचते ही उन्होने मुझे निर्देश दिया- 'तुम तुलसी के पास जाओ और वहीं तुम्हारी शिक्षा-दीक्षा होगी।' गंगाशहर में अज्ञात की उर्वरा में एक बीजवपन हुआ था, उसे अब अंकुरित होने का अवसर उपलब्ध हो गया ।
मुनि दीक्षा स्वीकारने के पश्चात् क्या करना चाहिए- इसकी दिशा मेरे सामने स्पष्ट नहीं थी । अज्ञात जब सक्रिय होता है तब ज्ञात की दिशा स्पष्ट नहीं होती । शायद ऐसा भी होता होगा कि ज्ञात की दिशा स्पष्ट होने पर अज्ञात की सक्रियता कम हो जाती है। लोंगो ने मुझे बहुत बार पूछा- आप इतनी छोटी अवस्था मे मुनि क्यो बने ? मैं इसका क्या उत्तर देता ? कुछ गढ़े गढ़ाये उत्तर होते हैं । मैं उसमें कम विश्वास करता हूं। इसलिए मैं नही कहता कि मुझे संसार असार लगा
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