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अतीत का अनावरण
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जब-जब सुनता हूँ, तब-तब मन करुणा से भर जाता है । हमारी दुनिया के इतिहास में एक बहुत बड़ा भाग अन्याय के इतिहास का है, यह स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं होती । रोटी, वस्त्र आदि पदार्थ सम्बन्धी कठिनाइयों को हल करने में भी मनुष्य सफल नहीं हो रहा है, तब अन्याय की कठिनाइयों को हल करना तो और भी अधिक कठिन कार्य है । क्या यह सरल हो सकता है ? यह प्रश्न आज भी मेरे लिए प्रश्न ही बना हुआ है । साहित्यिक रुचि प्रारम्भ से थी । संस्कृत में कविताएं, कहानियां लिखना चलता ही था । फिर हिन्दी में कविताएं लिखनी शुरू कीं । निबन्ध भी लिखे । तब हिन्दी जगत् के साहित्यकारों से सम्पर्क बढ़ने लगा । जैनेन्द्रकुमार, मैथिलीशरण गुप्त, बालकृष्ण शर्मा 'नवीन', सियारामशरण गुप्त, रामधारीसिंह 'दिनकर', कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' आदि साहित्यकारों से सम्पर्क हुआ । केवल सम्पर्क ही नहीं हुआ, आत्मीय भाव भी बना। फिर भी मन में एक असंतोष उभरता रहता था । वह बार-बार अन्तःकरण को कचोटता रहता था। क्या विचार ही अंतिम यात्रा है ? क्या साहित्य-साधना ही अंतिम यात्रा है ? क्या इससे आगे और कुछ नहीं है ? आधुनिक युग का व्यक्ति होने के लिए आधुनिक ढंग से सोचना और आधुनिक भाव- भाषा और शैली में लिखना पर्याप्त है । पर आधुनिकता पूर्ण सत्य तो नहीं है । वह एक सामयिक सत्य है । पूर्ण सत्य त्रैकालिक होता है, केवल सामयिक नहीं होता। एक बार हम लोग प्रभुदयाल डाबड़ीवाला के घर पर ठहरे हुए थे। सूर्यास्त होने को था। डॉ० राममनोहर लोहिया वहां आए । कुछ समय हम लोग बात करते रहे। सूर्यास्त हो गया । डॉ० लोहिया ने उठते हुए कहा -- चलें, हम भोजन करें। मैंने कहा—सूर्यास्त हो गया । अब भोजन नहीं कर सकते । वे बोले – 'आप आधुनिक मुनि हैं, फिर यह कैसा प्रतिबन्ध ? ' मैंने इसका प्रतिवाद किया। मैं आधुनिकता में विश्वास नहीं करता, शाश्वत में विश्वास आधुनिकता में होगा ही, पर केवल आधुनिकता में नहीं होगा । मैं मुनित्व को प्रत्यक्ष ज्ञान की साधना मानता हूँ। वह त्रैकालिक के बोध से ही संभव हो सकती है। केवल आधुनिकता हमें बहुत दूर तक नहीं ले जा सकती। आजार्यश्री तुलसी के अत्यन्त निकट साहचर्य में मैं रहा । राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्त्ता, साहित्यकार, पत्रकार आदि सभी प्रकार के लोगों से विचार-विनियम करने का अवसर मिला । धर्म में अति श्रद्धा रखने वाले और धर्म को अस्वीकार करने वाले, दोनों प्रकार के लोगों से सम्पर्क होता रहा, पर मैंने उनमें से बहुत लोगों को तनाव की मन:स्थिति में पाया। मुझे लगा, तनाव वर्तमान
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