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मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि करते हैं, आखिर मेरी भी कुछ इच्छाएं हैं । पर ये हैं कि मेरी कोई भी बात नहीं सुनते। पड़ोसी बोला-बात क्या है ? उसने कहा-बात बस यही है कि मैं चाहती हूं मेरा लड़का डॉक्टर बने । उसे डॉक्टर बनना ही चाहिए, पर ये मानते ही नहीं।
पति ने कहा—इसकी बात आप लोगों ने सुनी, अब मेरी भी तो सुनो। आज करों का भार इतना बढ़ गया कि हम व्यापारी लोग दिन-रात वकीलों के पीछे चक्कर लगाते फिरते हैं। मेरा बेटा वकील बन जाएगा तो इस मुसीबत से छुटकारा मिल जाएगा। आप लोग ही बताएं, मैं क्या गलत सोच रहा हूं?
पत्नी फिर बोली- मैं भी तो बीमार रहती हूं। आए दिन किसी न किसी डॉक्टर को बुलाना पड़ता है, अस्पतालों के चक्कर लगाते-लगाते मैं भी थक गई हूं। आप लोग ही बताएं—मेरा चिन्तन क्या गलत है ? बस हम दोनों का यही झगड़ा है। ___ पड़ोसी समझदार थे। उन्होंने कहा- ठीक है, एक की राय है कि बेटा डॉक्टर बने और दूसरों की राय है कि वह वकील बने । पर कम से कम उस लड़के की राय भी तो जान लेनी चाहिए कि वह क्या बनना चाहता है । लड़के को बुलाइये।
पति-पत्नी दोनों बोल उठे-लड़का तो अभी पैदा ही नहीं हुआ।
हमारी दुनिया में न जाने कल्पना के आधार पर कितना कुछ चलता है। लड़का पैदा होने के बाद जो बात सोचनी चाहिए वह पैदा होने के पहले ही सोच ली जाती है, यही तो सबसे बड़ी भूल है। जिस समय जो बात सोचने की होती है वह उसी समय सोची जाए तब तो उसका कोई परिणाम आता है । किन्तु पहले सोचने वाली बात को बाद में और बाद में सोचने वाली बात को पहले सोच लिया जाए तो उसका कोई परिणाम नहीं आता। हम अनुशासन की बात बहत सोचते हैं। अनशासन आए, पर संभव नहीं। शासन ही नहीं है तो अनुशासन कहां से आएगा । इस शब्द को जानने वाला व्यक्ति जानता है कि शासन के पीछे 'अनु' लगता है तब अनुशासन बनता है । 'अनु' का अर्थ होता है बाद में अर्थात् बाद में होने वाला शासन । शासन के बाद में होता है अनुशासन । पहले पुत्र होने की चिन्ता नहीं करते, पहले काले और गोरे की चिन्ता करने लग जाते हैं। हम पहले अनुशासन लाना चाहते हैं जब कि पहले शासन लाना जरूरी है। सबसे पहले चिन्ता करें शासन की। जब शासन होगा तो अनुशासन अपने आप जीवन
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