Book Title: Manorama Kaha
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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२६५
तइयअवसरे भूरिवसूरयणप्पहाभ ववण्णणे सदारसंतोसवए कुंद-मयरंदकहा कत्थइ वियरंतुत्तुंग-कसिण-गयजूह-जणियघण-संको। कत्थइ वराह-घोणाभिघाय-जज्जरिय-धरणिधरो।१३३। कत्थइ ललंत-रुटुंत-भमर-भज्जंत-कमलदल-नियरो । कत्थइ करिकर-संघट्ट-तुट्ट-वोसट्ट-कंदोट्टो ।।१३४।। कत्थइ कोलाहल-रिटुभ-उत्त[त्थ]घूयगणो । कत्थइ सिहंडि-तंडव-मंडिय-सिहरग्गरमणीओ ॥१३५।। कत्थइ जंबुय-राइणि-खज्जूर-कयंब-कूडव-कयसोहो । कत्थइ वउलावलि-देवदारु-धव-धम्मणाइण्णो ॥१३६।। कत्थइ वरुणय-पुण्णाग-नाग-विज्जउरि-बोरि-फणसिल्लो । कत्थइ अक्ख-फलक्ख-सोत्थावलि संकुलो सहइ १३७ कत्थइ तमाल-हिंताल-ताल-नालियरि-सल्लइ-सणाहो । अंकोल्ल-करंजासण-सीवल्लि-समीहिं सोहिल्लो।१३८। कत्थवि य बोरच्छ-पत्थर-विसरुत्थिय-कमलिणीहिं रमणीओ। कत्थइ दक्खा-मंडव-मंडिय-महि-मंडलाभोगो।। अण्णत्थ गिरिनई-सलिल-लहरि-हीरंत-हंस-मिहुणेहिं । कारंडव-सारस-चक्कवाय-मिहुणेहिं य खवण्णो।१४०। थल-कमल-गलिय-मयरंदबिंदु-संदोहसित्तसव्वंगो । रुंत-महुर-महुयर-गायण-गिज्जत-गुण-नियरो ।।१४१।। झर-झर-झरंत-निज्झर-झंकारव-भरिय-सयलबंभंडो । जाइ-मुचुकुंदाइ-कुसुम-गंधुद्धरो धणियं ॥१४२।। सोरट्ठ-धरणिवर-रमणि-भव्व-भालयल-तिलय-सारिच्छो । पज्जलंतोसहिसंदोह-पयड-दीसंत-निसि-सिहरो१४३ सरय-समुग्गय-ससहरकंति-समप्पहेण तुंगत्तण-पक्खलिय-दिणयर-रहपहेण पवणपणच्चिर-निम्मल-धयवड-सुंदरेण जो सिरिनेमिजिणि दह मंडिउ मंदिरेण ॥१४४।। किं बहु]णाजत्थ जिणा[ण] दिक्खा नाणं तहेव निव्वाणं कल्लाण-तियं पत्तो हरिवंस-समब्भवो नेमी ।।१४५।।
हरिकल-णयल-चंदो बहहा बहपरिवारो को तं किल वण्णिउं तरइ । तम्मि य गिरिनइ-निगंजे धारागिह-कयलीद्वरलया-मंडवाईसु कीलिउमारद्धा लोया । कुंद-मयरंदा वि कीलंता गया दाहिण-दिसा-भाग-संठियं गिरि-निगंजमेगं । विटा तओ सरस-नलिणीदल-विरइय-सत्थरोवरि णुवण्णा, मुणाल-नाल-हार-विराइय-वच्छत्थला, चंदणरस-विहिय-विरल-विलेवणा, रइरूव-विब्भमा, अटारस-वरिस-देसिया एगा वरतरुणी । संजायाणुरागेण निज्झाइया सुइरं कुंदेण । तीए वि सो तहेव । मणियमणय-वियारेण भणिओ कंदो मयरदेण-"भो वयंस ! न जुत्तमेत्थ चिरमवत्थाणं । एहि अण्णत्थ गच्छामो । पडिवण्णं तेण । गया ठाणंतरे । तग्गयमणो दिण्ण-सुण्ण-हुंकारो निसण्णो सहयार-छायाए कुंदो । मयरंदो वि ईसि दूरयरे । समागया एगा दासी । समप्पिऊण सरस-पूइ-फलेहिं तंबोलं, अवलंबिऊण गले बउलमालियं, भणिओ कुंदो तीएसुहय ! तुह दंसणेणं हियसव्वस्सा व सामिणी अम्ह । सुण्णा नुवण्णा न लहइ नलिणीदल-सत्थरे विरई ।।१४६।। एगं पिय-जण-विरहो बीयं तुह सणुब्भवं दुक्खं । गंडस्सोवरिपिडिया दुक्खं कह तीरए सहिउं ॥१४७॥ जइ अत्थि तुज्झ करुणा विहलं न करेसि पत्थणं मज्झ । नियसंगमामएणं निव्वावसु तीए तां अंगं ॥१४८।।
एयं सोऊण मयणसरसल्लिओ वारिज्जतो वि मयरंदेण गओ कुंदो । अकज्जं काऊण समागओ । मयरंदेण भणियं
परदार-विरइ-वज्जण-वयमेयं खंडिऊण कह मज्झ । दंसेसि नियवयणं निल्लज्जाणज्जकयकज्ज ।।१४९।। अज्जप्पभिई मज्झं मित्तो वि तुमं न होसि किं बहुणा । जो गुरुवयणं अवगण्णिऊण पावं समायरसि ॥१५०।।
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