Book Title: Manorama Kaha
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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मणोरमा-कहा
गह पीडहुं संपय चलउ, वसण-सयइं निवडंतु । पर परमेसर पासजिण, पइं विण दियह म जंतु ॥ जइ लब्भइ पहु मग्गियउं, ता इत्तलडं करेज्ज । भवि भवि महु निय पयकमलि, अविचल भत्ति विहेज्ज ।।
___ एवं काऊण पासजिणसंथवं जावज्जवि न विरमइ मणोरमा ताव उठ्ठिया नहयले अमाणुसी वाया-"वच्छा ! तुट्ठा हं तुम्हाण इमाए असाहारणाए जिणिदभत्तीए इहट्ठियाण चेव भविस्सइ तुम्ह कइवय-दिणमझे पिययम-सुएहिं
" एवं सोऊण संतुटुमाणसाओ गयाओ उज्जाणमज्झसंठियपवरपासाए। काराविया कहकहवि पाणवित्ती हेमसुंदरीए मणोरमा । भुत्तुत्तरे पुच्छिया, मणोरमाए विज्जाहरी-“भइणि! का तुमं? कि निमित्तं वा एगागिणी इह निवससि ? केण वा कारियं जिणमंदिरं आरामपासायसहियं ? ' विज्जाहरीए भणियं-"सुणउ पियसहि ! .
अत्थि इहेव जंबूदीवे वेयड्ढदाहिणसेढीए तारासुंदरं नाम नयरं। अणेग-समर-संघट्ट-निवडियविक्कमो विक्कमधणो नाम राया। रइ व्व मयरकेउणो रइसुंदरी नाम महादेवी। तीए सह विसयसुहसुहमणुहवंतस्स वोलीणो कोई कालो। अवच्चमुहदसणुक्कंठुलाण मज्झिमवए वट्टमाणाण ताण अहमेगा दुहिया जाया । काराविओ ताएण सव्वम्मि नयरे वद्धावणयमहूसवो। उचिय-समए पइट्ठावियं मे नामं हेमसुंदरी। गाहिया इत्थीयणजोग्गाओ कलाओ। कमेण पवड्ढमाणा पत्ता जोव्वणं ।
कयाइ वसंतसमए सहियणसमेया गया हं नयरबाहिरुज्जाणे। इओ तओ परिकीलमाणीए अहरिय-बरहिवरह[क]लाव-केसपासो, अट्ठमी मियंक-सरीस-भालपट्टो, गुणारूढ-कामकोयंड-कुडिल-भूजुयलो, विसट्टकंदोट्ट-दल-दीहरलोयणो, सज्जणसहावसमुज्जुयनासावंसो, फलिहमणिदप्पणामलकवोलयलो, पक्कबिंबाफलारुणाहरो, धवल-सम-सिहरिदसणावलीरेहिरो, तिरेहा-रेहिर-कं]वुकंधरो, पडिपुण्ण-पुण्णिमायंद-चारुवयणो, 'मणिकुंडलविरायमाण-सवण-जुयलो, महापरिह-सरल-सुंदर-बाहुदंडोवसोहिओ, पुरवर-कवाड-वित्थिण्ण-वच्छत्थलो, मुइयमीणमणहरोदरो, पंचाणणपीणकडियलो, क[य]लीदंडकोमलोरुजुयलो, करिकराणुकारिजंघाजुगविराइओ, कुम्मुण्णयगूढगुंफचलणो, चंगिमालंकिओ, पंचविहमणि-किरण-करंबियवरहारो, मालाविहियसिर-सेहरो, हारिहरियंदणविहियविरलविलेवणो, वरवत्थाहरणविरायमाणसरीर-सोहाहरियमयरद्धओ, नलकूबरो व उज्जाणसिरिसमवलोयणत्थं समागओ, दिट्ठो मए एगो जयाणओ। चिरपरिचिए व्व तम्मि दिढे आणंदबाहपडहत्था जाया मे दिट्ठी। पवणपणोल्लिय-कंकेल्लि-पल्लवो व्व पकंपिओ अहरो। फुरियं बाहुलयाहि । समूससियं पओहरेहि । थरहरियं ऊरुजुयलेण। पयट्टा अंगभंगा। तं किंपि मए मयणाउराए समयम्मि तम्मि सच्चवियं जं न पढियं, न दिढें, न सुयं, न सिक्खियं कह वि। सो वि तारतरल-पम्हलदीहर-तंबकसिण-धवलेहिं पि मुणियाणुरागेहिं लोयणेहिं सुइरं मं निज्झाइय अरसणो संवुत्तो। तओ वित्थरिओ मह वम्महो संतावानलो य वढिओ मुहमारुओ रण[रण]ओ गलिओ अंसु-पवाहो गुरुवएसो य। समुग्गओ पुलओ जिभारो य। विमुक्का अप्पा जीवियासा य। पणट्टा लज्जा गुरुयण-संका य। कि बहुणा चित्तलिहिया विव, थंभिया विव, जरिया विव, महावाहिवेयणाउरा इव, कलहंसिया व रायहंसं, वरहिणी व घणमंडलं, रहंगिणी व रहंगं सारसीव सारसं कमलिणी व दिणयर, समुद्दवेल व्व मयलंछणं. भमरावलीव पंकयं, जणयतणय व्व रामदेवं, रइ व्व मयरद्धयं, लच्छी व नारायणं, करेणु व्व करिवरं, करुणा व महामुणी, जोगिणी व मंतपयं, तं चेव हिययट्ठियं झायमाणी, निरुद्ध-सव्वंगोवंगधारा अवयणा संवुत्ता हैं। तओ गंतूण तुंदिलाभिहाणघरदासीए साहियं अंबाए-सामिणि ! हेमसुंदरीए विसमो दसाविपागो वट्टइ। जओपेच्छइ अलद्धलक्खं निहुयं नित्थणइ सुण्णयं हसइ । जंपद अव्वत्तक्खर-वयणेहि सहीहि सा लत्ता॥ जीवस्स व दाविता मग्गं से दिति दीहमुह-पवणा। खरपवणुद्धयपत्तं व कंपए तीए सव्वंगं ।। धण्णासि तुमं सामिणि जइ धरमाणीए तीए महकमले । पेच्छसि भणिऊण इमं मोणेण ठिया तओ दासी ॥
एयं सोऊण ससंभमा समागया मह समीवं अंबा। कह कह वि लद्धचेयणा पुच्छ्यिाहमिमाए-“वच्छे ! को एस वइयरो?" अहं पि अदिण्णपडिवयणा अहोमुही ठिया। साहिओ सन्वो वि जहट्ठिओ बंधुमइ नामियाए पियसहीए मज्झ
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