Book Title: Manorama Kaha
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 346
________________ मणोरमा-सूरसेण चरियं ३१९ कित्तिसुंदरो विय लक्खीयइ।" मणोरमाए विसेसेण बामेण लोयणेण अवलोइऊण भणियं--"मह तणओ मणोरमसेणो वि य विहाविज्जइ।" एवं भणमाणीण चेव ताण समागया विजयसेण-सूरसेणा। संपूइऊण पासपयपंकयं ते वि निसण्णा बाहिरमंडवे । तओ वियसियमणलोयणाए भणिया हेमसुंदरी मणोरमाए --"मज्झ जणय-पइणो विय विभाविज्जति।" एत्यंतरे पविट्ठा रइसुंदरी समं विजयावलीए जिणभवणे । पूइओ ताहि पवरपुप्फाइहिं सव्वष्णू। काऊण वंदणं विण्णत्तो रइसुंदरीए ---"भयवं ! सचराचरजीववच्छल, करुणामयमयहर ! दोग्गइदुहदुहिण संपसायं काऊण तहा करेसु जहा मिलइ हेमसुंदरी कित्तिसुंदरेण । विजयावलीए एवं विण्णत्तो-- संबंधिवग्गहियकर करुणं काऊण दुक्खियजणम्मि । तह वि कुणसु सामिय जह मिलइ मणोरमा मज्झ ।८७६ । एवं भणिऊण निग्गयाओ ताओ। हेमसुंदरीए भणियं--"इमाण जेट्ठा मह माऊयाए सारिच्छा।" मणोरमाए भणियं-“कणिट्ठा मह मायरमणुकरेइ ।" हेमसुंदरीए भणियं--"कत्तो अम्ह एत्तियाणि भागधेयाणि । निक्कारणकुवियनरवम्मवरिणो मायाविलसियमेयं संभाविज्जइ । ता तिरोहियाओ चेव चिट्ठामो।" तहेव ठियाओ । गंधव्वसेणवयणेण पारद्धं भुवणगुरुपुरओ पेक्खणयं । समसरसमवरवत्थाहरणवेसया विजियकलकंठा जिणगणगब्भयं गाइउमारद्धा विज्जाहरवंदा। पवाइयाणि वीणा-वेण-मुइंग-पह-पहाणवाइत्ताणि । तओ जहा-ठाणमवविठेसु सयलविज्जाहरेसु, निमिए मज्जणे, चरणक्खेव-समय-खणमेत्त-पयड-पलोइज्जमाणरंभाथंभ-विब्भमोरुजयलाओ, चलण-कंपचलिर--पोमराय--मणिनेउररणझणारावमुहलिय-दिगंतराओ, कुंभिकुंभविभम-पओहर-भरक्कंतनमंतक्खाममज्झभायाओ, नियंब-भज्जिर-जंघ-जुयलजणिय-जणविम्हयाओ, थूरथामथरथरावियथोरथणवट्टकंचुक्कय-गुणाओ, कण्णवसासमंजसनिवडतसन्निरुद्धवयण-नयण पसरकुडिलय-केस-संजमण-समाउल-पाणि-पल्लवाओ, आरूढगुणकामकोयंडडंडकुडिलभूनिक्खेवक्खित्त-कामियण-हिययाओ, आयंबतार-नलिण-करसहसकिरणुक्केरकरंबियंबरंतराओ, फलिहमणि विणिम्मियामलमंडवतलाकलंक--संकंत-मुहयंदसंदोहतया एगसकलंकससहरसोहासेसुद्धरं नहयलमुवहसंतमिव, रंगंगणदेसम्मि निद्दयपायप्पहारपहयधरणीयलाओ, सम-सेयं-सलिलबिंदुसंदोह[जज्जरियभालतिलयाओ, सब्भावसारं पणच्चियाओ विज्जाहरतरुणीओ । जहारिहं दाऊण पुप्फ-तंबोलाईणि विसज्जिया पेच्छया। एत्थंतरे उट्ठिया जिणभवणभंतरे अमाणुसीवाया-"हेमसुंदरी ! न सत्तुसंका कायव्वा । जहादिटुं भवईहिं तहेव सव्वं सच्चं ।" एयं सोऊण निग्गयाओ हेमसुंद[री] मणोरमाओ । मिलियाओ नियबंधुवग्गं । आणंदभरनिब्भराणि ठियाणि खणमेगं सिणेहसारं कहाए। पच्छा भणियं मणोरमाए-- एयस्स नमो गिरिणो इमस्स दल्लंभिणो महत्तस्म । जत्थ परमत्थ सज्जणसमागमो अम्ह संजाओ।८७७। ता सयलजणसमक्खं [ज]त्ता [य] परमायरेण काउण । कीरउ गणनिप्फण्णं पियमेलो नाममेयस्स १८७८। तहेव काऊण गन्धव्वसेणवयणेण गयाणि सव्वाणि वि दाहिणसेणिसंठिए नहसुंदरनयरे कयसम्माणाणि गंधव्वसेणेण ठियाणि तत्थ कइवयदिणाणि । ___ अण्णम्मि दिणे समागयाए रयणीए, अलण्हजोण्हापसरेण पयासिएण ससहरेण, धरणीयले आसणं काऊण निसण्णेसु विजयसेण-गंधव्वसेण-रइसुंदरी-विजयावलि-हेमसुंदरि-मणोरमा पमुहसयणवग्गेसु, पवड्ढमाणे गोट्ठीरसे, अवसरं लहिऊण पुच्छिया नियजणणी हेमसुंदरीए--"अम्मो ! मणोरहाण वि अगम्मो कहमेस इट्ठजणसमागमो जाओ?" तीए भणियं--"एस ताव विजयसेणो राया विजयावली य मणोरमादुक्ख-दक्खियाणि याणि । सूरसेणो वि कलत्तावहार-विहुरियहियओ न अहिलसइ भोयणं, न बहु मण्णइ गंधव्वं, निदइ नियजीवियं, सया सण्णिहियसूरचंदं पि तमंधयारमिव मण्णइ महीमंडलं । जओ-- सरसु वि भोषणु विरसु होई गंधुक्कडु हारउ । उन्बीसइ जियलोउ भुवणु भावइ अंधारउं ॥८७९।। जइ न खणद्ध वि[र]स-निहाणु जणि अब्भरहुल्लउं! दीसइ दंसणु-जणि[य]सोक्खु माणुसह मुहुल्लडं ॥८८०।। _Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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