Book Title: Manorama Kaha
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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१७६
२०० २८७
३२२ २५४
८०
३०८ २४८
१९१
१६० २७८ २३२
१२
२७०
एत्थंतरि उवसग्ग एमाइ दिट्ठता लक्षण एमाइ धम्मकम्मज्जणम्मि एमाइ धम्म कहणं एमाइ संलवंता एमेव कहव कस्सव १एयं चिय पंचविहं एयं निसामिऊणं २एयं पि नत्थि अण्णं एयं पि विउसवयणं एयम्मि अविण्णाए एयं सो दिसिमोहो एयस्स णमो गिरिणो एयावसरे महागय एरिस रूव-वरवण्णिय एलग रासहनयणा एवं अरइरईउभव एवं य कोहल एवं कुणमाणाणं एवं कुहम्ममझे एवं के वि जिया एवं खु जंतपीडण एवं खु जंतपीलण एवं च जंति दियहा एवं च होइ सहलं एवं तु भण्णमाणो एवं पयंपमाणे वि एवं पयंपमाणो एवं पयंपिऊणं एवं परपरिवाओ एवं परपरिवायं एवं पवड्ढमाणी एवं भणमाणीए
१
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२९६
५१ एवं भणिऊण तए ५६ एवं भणिऊण तओ १३७ एवं भणियं लग्गो २८३ एवं भणियतक्खणा २८० एवमगुणे अग्गीए ३१३ एवं मज्झ वि पिययम १४६ एवं मण्णइ चित्ताण १५० एवं लग्गति दुम्मेहा १९३ एवं बच्चइ कालो २७४ एवं वच्चंति दिणा १४८ एवं विचितिऊणं ३३५
एवं विभाविऊणं
एवंविहं असारं ३०८
एवविहं महं सो एवंविह कज्जकरो
एवंविह गुणरहिए ३३३
एवंविह दुक्खाई एवंविहम्मि समरे एवंविह वयणपरंपराए एवंविह वयणेहिं एवंविह क्यणेहि
एवंविह सुहभावण २४८
एवंविहस्स वर्षणं एवंविहा उ पुरिसा
एवंविहि परिणामा ३०६
एवंविहे मुहुत्ते ९७ एवं सयण-विहंगा ३२३ एवं सूरीण परंपराए
९८ एस गच्छो महाभागो ३३४ एस च्चिय सोहा ३३३ एस पुण पावो वि ३२९ एसा जिणाण पूया ३१८ एसो कहापबंधो
एसो किल दिलैंतो १. आचा० नि: २३३ ।
२९० ३२२
९८ एसो तस-थावर-विस ३१३ एसो य मज्झ दुहिया ३२४ एसो राया अण्णे
९८ ओसरइ पहूण परव्व २७३ ओसहकज्जं परिवज्जिऊण २५४ ओसहदाणेण फुडं
कइवय वरभड परियरउ
कंकुडए को दोसो १०६ कंचणरसखचियउज्जल ९७ कंत कयलीहरेसुं ११५ कंदप्पकुक्कुइयं १५० कंद ! ररहियावग्घी
कंदुक्खणणं निय देस ११० कंबुण्णय सुउमाला
कक्कोल-लवंग-नालिएर कक्खागय-पुरिसाणं
कक्खोरुनाहिपीवर ७७ कज्जेण होइ सयणो
'कडए य ते कुंडलए य २१४ कणस्थ भिक्खाए २४३ कणयगिरिकूडसरिसा ११५ कण्णे धुणंति जई
कत्तियनक्खत्तम्मि
कत्तिया चेव अस्सेसा १९८
कत्थाइ अहोमुहट्टिय
कत्थई आवत्तगया २३८ कत्थइ कलकोइल
कत्थइ कावालिय ३२१
कत्थइ केसरिपुच्छ___ कत्थइ कोलाहलरिट्ठभ
कत्थइ जंबुयराइणि
कत्थइ झापट्टिय ९०
कत्थइ तमालहिंताल १ उत्त. नि० १३९ ।
१७५
२९०
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२८२
२७३
३०७ २९४
१४८
२९४ २६४
२८१
२६४ २६४ २६४ २६५ २६५
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२४२
२६४
२६५
१. प्रव०९६३ । २. चउप० पृ०५६ ।
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