Book Title: Manorama Kaha
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 378
________________ ११२ २६६ 3 ३२६ १५० ३३३ २७४ १४६ mr ४४ २७४ २९१ २९० २७० २९१ २७५ ३२५ ३२७ २९१ २९० ३०६ ४५ २८२ १५४ २९० जागरह जणा निच्चं जा जीवं मे भयवं जाणइ जीवाजीवे जाण मणवनणिगुंजे जाण सयासा जम्मो जाणामि जह विरुद्धं जा पुण्ण मणिबंधाओ जायइ विसं पि अमयं जायाण धुवं मरणं जावइओ पारोहो 'जावइयाइं दुक्खाई जावज्जवि पडिवयणं जावत्थि बलं जावत्थि जाव न वाहइ खग्गं जा वल्लरक्खण-कए जाव वुत्थं सुहवुत्थं जा समिला सो जीवो जिणधम्मपरिब्भट्ठा जिणधम्ममोत्तूणं जिणपडिमाणं पुरओ जिणपडिमाणं पुरओ जिणपूयं कुणमाणो जिणपूया परिणामो जिणपूयाइविहाणं जिणपूयालोयसमुल्लसंत जिणह कसाय-पिसाए 'जियपरिजियनिद्दो जीए तिण्णि पलंबा जीए हसमाणीए जीयं निरत्थयं होइ जीयं मरणेण समं जीवंताण नराणं M जह जह तं अवलोयइ जह जह दुहिया दुहिया जह जह न देमि दविणं जह जह पर परिवायं जह जह सुयमोगाहइ जह जीवा बझंति जह ण्हाउत्तिण्ण गओ जह तिमिररुद्धदिट्ठि जह नलवेणु वणेसु जह पउरकट्ठकाणण २जह परमण्णस्स विसं जह पित्तजरय-संताव जह बहु तरुवरगहणे जह भणिय उत्तरोत्तर जह मंताणं मज्झे 'जह लोहसिला अप्पं जह वि नरो जाणेइ जह सरणमुवगयाणं जह सामण्णे धरणीयलम्मि जह सामण्णे पाए जह सूरसेण राया जहिं नत्थि सारणा तह जहि संपुण्ण मणोरहहं 'जहेग वेज्जस्स सुओ जाइं कुलं कलाओ जाइकुलमायारो जाईसो पुणउ अणुराउ जाए वच्चंतीए जाणू *जागरणसुयणछीयण १.ब० क०११६७ । २. संवे० पू० ४३९ । ३. संबो० स० पृ० ११ । ४. बृ० क० ३२५९ । ५. संवे० प० ५९१। २९१ २६९ जीव म वहह २८७ जीवदया दइयाए ४६ जीववहो अप्पवहो २८३ जीवस्स व दाविता ९५ जीवाइ नव पयत्थे ८६ जीवाईए भावे बहु २७१ जीवाण गई कम्माण २१६ जीवा धम्म-पमायं २१२ जीसे हसमाणीए जीहाए विलिहतो ३२६ जुझंताणं समरे ३०७ जूय घरि सह घरिणीए जे उण न चेव गिण्हंति २१२ जे किर एत्थ पयत्थ जे गया तह गच्छंति १७३ *जेट्ठासाढेसु मासेसु २९० जेह्रण अह कणिछो ३२६ जेणं चिय उब्भविया १९५ जेण ण सुत्थो अप्पा जेण तए पुव्वभवे जेणत्थदंडविरइ 'जेण पाएमि हं मलयं २४२ जेण पियमाणसेण ५ जेण भिक्खं बलि देमि जेण विणिम्मियाओ जे गिहिमणो वि पुच्छइ जे नर पुइवि पास पई २७० जे पुण अणत्थदंडे जे पुण इह जीवेसु १. संवे० ५५९४ ॥ २४५ २. गच्छा०१७। ३. उत्त०नि०१३० । ४. उत्त०नि०१२६ । ५. उत्त० १२४॥ ३०७ १४२ २८९ २९० २०४ २४२ १७२ २०१ १७२ १५६ २१२ ० ० WG ७० ३१५ २९५ ३२७ २७० २८४ १५६ १. बृ० क० ३३८२ । २. संवे० ५५९३ । ३. बृ० क० २४२। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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