Book Title: Manorama Kaha
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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मणोरमा सूरसेणचरियं
३१५
इओ तओ परियडंती दिट्ठा हेमसुंदरीनामियाए विज्जाहरीए । उवसप्पिऊण पुच्छिया-"का तुमं? कहं च तुम एगागिणीमणयजणालंघणिज्जे इमम्मि पव्वए समारूढा? किं निमित्तं वा नियवग्गविच्छोहिया हरिणि व्व बाहजलाविललोयणा तरलतारतरलयं समंतओ निरूवेसि ?" साहिओ सव्वो वि जम्मण-नयर-जणणि-जणयनिय-नामयपुरस्सरो सुय-हरण-पज्जवसाणो निय-वइयरो मणोरमाए। एत्थंतरे परिमल-मिलंत-भमर-भर-भज्जमाणसाहाहिंतो गहिऊण पवरकुसुमाणि समागया सामला नाम हेमसुंदरीए दासी। विणय-पुरस्सरं जंपियमिमाए-“सामिणि ! समओ वट्टइ पारगयपायपूयणस्स। मणोरमं गहाय गया विज्जाहरी समुद्दवेलोवकंठसंठियं सिहरग्ग-भग्ग-रवि-रहप्पयारं, फलिह-मणिसिला-संघायविणिम्मियं, जलहिजल-संकंत-पडिबिंबतया अहोलोयजण-पावणत्थं पायालमिव गच्छंतं, सयल-जणमणहरं जिणहरं। दिट्ठा य तम्मज्झे सचराचर-जीव-जोणि-निक्कारण-बंधुणो, भवावडावडियसत्तसंताण-समुत्तारण-समत्थरज्जुणो, सिरोवरिविरइय-फणिराय-फारफणा-मंडव-फूरत-मणि-किरण-नियर-संवलिय-सामल-सरीरकंति-कब्बुरियं वरगब्भहरंतविरायंत-संकंत-मुत्तिणो, पउमावइ-पमुह-सोलस-विज्जादेवि-सन्निहाण-हारिणो,कमठासुर-दप्प-दारिणो, पणय-जण-समीहियत्थकारिणो पाससामिणो पडिमा विहि-पुरस्सरं काऊण मणिमयकलसेहिं मज्जणं विलित्ता घणसार-हारि-हरियंदणेण पूइया परिमलमिलत-छप्पयावलिनिगुंजारवभरियभवणोदरेहिं पारियाय-पमुह-कुसुमेहिं उद्घाइओ डझंतागरुकप्पूर-पूर-विणिस्सरंत-बहलधमंधयारियगब्भहरो धुवो। होऊण समचियावग्गहे आणंदभरभरियलोयणा भावसारं थुणिउमाढत्ता हेमसंद जय हि जय जीववच्छल ! जयभूसण ! सोमदसण सुरूव । पास ! तुह दसणेणं अज्ज कयत्या अहं जाया ।। संसाराडविमज्झे इओ तओ कह वि परियडंतीए। पुण्णाणुबंधिपुण्णेण पाविओ तं मए नाह ।। लोयालोय-पयासण-पच्चल-बरनाणदंसणसणाह । संसार-तिण्णतारय भवे-भवे होज्ज मह सरणं । तेलोक्कलग्गणक्खंभविज्जमाणेगलक्खणधराण । तुह पायाणं नमिमो भवजलहि-तरंड-तुल्लाण ।। सोहगं दोहग्गं सोक्खं च जीवियं च मरणं वा। तुह पहु चलणनमंतीए मज्झ जं होइ तं होउ ।।
एवं काऊण जिणसंथवं ठिया हेमसुंदरी। तओ मणोरमा काउमारद्धा-- वम्माए विहि अंगरुह, जिणेसर [पहु] पात । दयनिहि [सिद्ध-पसाउ करि, सासय-सोक्ख-निवास ।। दीण-दुहावर-दुहिययण-बच्छल-वर-लावण्ण । सरणु असरणह होह मह, सामिय सामल-वण्ण ।। अज्जु पणट्ठउ सोगभरु, हरिसु न अंगि वि माइ । वियसिउ लोयणजुयलु मह, मणु कल्लोलिहिं जाइ । नाणाविहमंगलनिलय, जं तुहं दिट्ठउ पास। जय-भूसण-वार]भयरहिय, सामिय पाव-पणास ॥ तिहुयण-सिरि तिहुयगतिलय, मुह वर जोइथ ताहं । निवससि पास प[स]ण्णमण, मणमंदिरि तुहं जाहं ।। अज्जु मणोरह-तरुफलिउ, सासयसोक्ख-फलेहिं । जं नामिउ भावेण सिरु, पासह पयकमलेहिं ।। पासजिणेसर लोयणई, पर सलहिज्जहिं ताई। ससि-सुंदरु तुह मुहकमलु, पइदिणु पेच्छहि जाई । गुणसायर तुह गुण-गहणु, जीह करइ सा धण्ण । जे गुणकित्तणु तुह सुणहिं, पासत्थ लि(?) कण्ण ।। जे नर पूइवि पास पई, पसरुट्ठिय पणमंति । ते सुरसुंदरि-मुहकमलि भसलत्तणु पाविति ।। ताव न भंजहि भुवणगुरु, नर मेइणि छक्खंड। जाव न पास पसण्णु तुहुं, भुवणत्तय-मत्तंड ।। ताहं निरंतर-मंगलई, कल्लाणइं करि ताहं । भवसायरु गो-पय-सरिसु, पासु पसण्ण जाहं ।। विसयकसायविसंतुलिहि, धम्मपमायपरेहि। हा हारिउ तेहिं मणुय-भवु, पासु न वंदिउ जेहिं ।। पासजिणिदह पयकमलु, हिया म हत्थहि मेल्लि । जि लंधिवि घंघल-सयइं पाव[सि] परम-सुहेल्लि ॥ जग-हिय-ग[र]गुरु जग-पवर, सरणागयहं सरण्ण । सामिय अब्भुद्धरणु करि, हउं तुह सरणि पवण्ण ।। सोम ! निरंजण कारुणिय, करुणिम करिवि कयत्थ । तिम्व किज्जउ जिम्व मज्झ पहु, सिज्झिहिं सव्व पयत्थ ।। होसइ दुक्खुत्तारू महु, एत्थ न संसउ देव । निप्फल होइ कया वि न वि, सामि तुहारी सेव ।।
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