Book Title: Manorama Kaha
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 337
________________ ३१० मणोरमा-कहा तत्तो चुओ समाणो रज्जं भोत्तण हत्थिणपुरम्मि। अणवज्जं पव्वज्ज काऊण गमिस्सए सिद्धि । साहूण संविभागं गहिऊणं पालयंति जे पुरिसा। इहापर]लोए तेसिं हवंति सुहसंपया सुलहा ।। अतिहिजणसंविभागं गुरुपुरओ गिण्हिऊण जे पुरिसा । भंजंति दो वि लोया ताण हया मंद-पुण्णाण । चउत्थं सिक्खावयं ।। एवं परूविए दुवालसविहे वि सावयधम्मे सिरिनंदणसूरिणा संजाय-संवेगेण भणियं भूरिवसुमंतिणा--"भयवं ! करेसु अणुग्गहं पडिपुण्णसावयधम्मवियरणेण ।" सूरिणा भणियं--"समुचियमेयं मुणियजिणसासणसाराण तुम्हारिसाण।" विहिपुरस्सरं दिण्णा देसविरई सूरिहि । पडिवण्णा भूरिवसुणा। धम्म-पडिवतीए कयत्थमत्ताणयं मण्णमाणो वंदिऊण सरि-पयकमलं गओ सघरं। साहिओ धम्मपडिवत्ति वइयरो रयणप्पहाए। तीए भणियं "अज्जउत्त । अहं पि पडिवज्जामि ।" मंतिणा भणियं पिए !" कल्लाणे को विरोहो ?" तओ समारुहिऊण रहवरं गया सिरिनंदणसूरिसमीवं । वंदिया सूरिणो। सुओ तयंतिए सावयधम्मो। पडिवण्णो भावसारं पहठ्ठमाणसा वंदिऊण आयरिए समागया सभवणं । पसंसिया भूरिवसुमंतिणा । विहरिया अण्णत्थ सूरिणो वि । रयणप्पहाए सद्धि निव्वडिय सिणेहसारं विसयसुहमणुहवंतस्स अणअइयारविरइपरिपालणं कुणंतस्स वच्चइ कालो । अण्णया रयणप्पह-पुत्तस्स रयणपुरंदरस्स दाऊण नियपयं, राइणा समणुण्णाओ काऊण संलेहणं पडिवज्जिऊण अणसणं, समाहिमरणेण मरिऊण, समुप्पण्णो ईसाणे कप्पे विज्जुप्पहो नाम देवो। रयणप्पहा वि तन्नेहमोहियमणा काऊण अणसणं मया समुप्पण्णा तम्मि चेव देवलोए विज्जुप्पहसुरवरस्स रयणमाला नाम अग्गमहिसी । सिरिवद्धमाणसूरीहिं विरइयाए मणोरमकहाए भूरिवसुदेसबिरईपवण्ण णो [तइय ] अवसरो भणिओ ।। मणोरमा-सूरसेण चरियं रयणप्पह-भूरिवसूण देसविरईए वण्णिओ लाहो। संपइ मणोरमा सूरसेणविरई पवचक्खामो ।।७७५।। अत्थि इहेव भारहे वासे फलिह-मणि-निम्मल-समुत्तुंग-पायार-सिहर-संरुद्ध-रविरह-मग्गं, हिमगिरि-सिहर-विसालधवल-पासाय-परंपराविणिज्जिय-सग्गं, कंचणार-विसयमंडणं धणकोसं नाम नयरं । तत्थ णं दप्पुद्धरारिमाणमहणपच्चलो नियपोरुसक्कंतसामंतमंडलो सुरो व्व सव्वत्थसुपइट्टिय-पयावो सूरतेओ नाम राया । सयलावरोहपहाणा रूबाइगुणगणविणिज्जियकमला कमलालया से महादेवी । इमीए सह सिणेहसार-विसय-सुहमणुहवंतस्स वच्चंति वासरा नरिंदस्स । इओ य सो ईसाणकप्पनिवासी भूरिवसुजीवो निय आउयं पालिऊण तत्तो चुओ समाणो समुप्पण्णो कमलालयाए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए। दिट्ठो य णाए तीए चेव रयणीए सुविणयम्मि चरिमजाम-समयम्मि चंदणचच्चियंगो सयवत्तपउमपिहाणो सियकुसुममालोमालिओ सच्छ-सीयल-सलिल-पडिपुण्णो कलहोय-कलसो वयणेण उदरं पविसमाणो। तं पासिऊण सुहविउद्घाए साहिओ दइयस्स। हरिसवसविसप्पमाणहियएण भणिया सा तेण-"सुंदरि! सयल-नरनाह-सिरसेहरो पुत्तो ते भविस्सइ ।” एयं सोऊण अहिययर-परितुट्ठा देवी नरवइविसज्जिया गया सट्ठाणं । जहावसरं तिवग्ग Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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