Book Title: Manorama Kaha
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 339
________________ मणोरमा - कहा सरस trafa एवं वणिऊण न विरमर बंभणो तावागओ विजयसेणपेसिओ पहाण- पुरिसो । भणिओ तेण सूरसेणो- "संपइ सोहणी मुहुत्तो । महाराय विजयसेणवयणेण समलंकरेउ कुमारो सयंवरामंडवं ।" 'एवं हवउ' त्ति भणिऊण चलिओ कुमारी । समागया सिरिसेणपमुहा अण्णे वि रायउत्ता कर्यासंगारा निसण्णा निय- नियनामंकिएसु मंचेसु । एत्यंतरे रवि-कर- समागम - समुल्लसंतकिरण भासुर मणि-मउड-विराइय- उत्तिमंगा, महमहंत महग्घ- परिमलवासियदियंतरा, मिगणाहि-विणिम्मियभालयलतिलया, चलिरपउमरायकुंडलविलिहिज्जमाणगंडत्थला, नित्तलामलामल यप्पमाणमोत्ताहल-विणिम्मिय- एकावलीविराइयवच्छत्थला, पवरमणिमयअंगयवरकरगयकंकणसोहंतबाहुजुयला, मणिमेहला-व पेरं निबद्ध - कलहोय - कणिर- किंकिणी सहसवण- पडिबोहिय सुत्त-मयरद्वय-झणझणंत मणिनेउर रमणीय-चलणपंकया, सुगंध - सेय- कुसुम-कय-सार- सेहरा, चारुचंदण चच्चियंगी, चेडिया चक्कवालेण समंतओ परिखित्ता पहाण - वत्थ - विहियवेसमणोरमा तं पएसं समागया, मुणिय-सयल -नरवइ- सुय-जाय - कुलरूव-सोहग्ग-नामाइगुणगणाए पुरओ दंसिज्ज माणमग्गा कुंडलयाभिहाणाए अंब-धाईए, पच्छओ समणुगम्ममाणमग्गा गहिय- वरमालाए चित्तण्णुयाभिहाणाए दासचेडिए उवरि धरियसियायवत्ता, उभयपास निवडत डिडीर-पिंडपंडुर- चारुचामरा, मणिमयपाउया-पइट्ठिय कुम्मुण्णय-पाय-पंकया, अहरिय - रायहंस-गय-गईए सयंवरा मंडवमणुपविट्ठा मणोरमा । तओ - परिपक्क - बिबोट, खामेण सादिट्ठवर वाल, सव्वंग सुकुमाल, मिउ-कसिण - केसा । अहिंदु समभाल, धणुकुडिल- भूयाल, सम-सरल-नासा ॥ उत्तट्ट - मिग-नयण; संपूण-सस-वण | सुपमाण- वरकण्ण तवणीय समवण्ण ।।७८७॥ नं सग्गपब्भट्ट । विसाहि आरत्तहत्येहि ।। ७८८ ।। 1 लायणवाहीए, गंभीरनाहीए || ७८९॥ रइरमण भवणेण, भूसियनियंबेण । मउएहिं उरुएहि, न केलिखभेहि वट्टाणुपुव्वेण, जंघाण जयलेण ।।७९०।। satपदलणे, सोहंत चलणेहिं | सव्वेहि राईह, सिरिसेणमाइहि ।।७९१ ।। मज्झेण, जस्स जहि ठिया पढमं तीए अंगम्मि निर्वाडिया दिट्ठी । तस्स तहि चेव ठिया सव्वंगं केण वि न दिट्ठा ॥ ७९२ | लीलावतीवा जत्तो जत्तो नियच्छइ कुमरी । सोहग्गमओ वढ्डइ तहिं तहिं रायतणयाण ।।७९३ ।। जत्तो विलोलपम्लधवलाई चलति तीए नयणाणि । कड्ढियसारा अ तत्तो धावइ अणंगो वि ।। ७९४ ।। मणसरसल्लियंगा विम्हियाहियया नराहिवा सव्वे । दट्ठूण तीए रूवं एवं चिंताउरा जाया ।। ७९५ ।। कि एसा गिरितणया महुमहणविवज्जिया अहव लच्छी । मयणविहीणा व रई सई व्व संक्कं विणा बाला । ७९६ । पायाल कणगा वा पणट्टविज्जा व खयरी अहवा । न हु माणुसीसु दोसइ एरिस रूवस्स संपत्ति । ७२७। घणो सो को विया तुट्ठो मयरद्धओ धुवं तस्स । जो करगहणमिमाए काही सोहग्गसीमाए । ७९८ । ३१२ एवं विम्हियमाणसेसु नरिंदणंदणेसु, नरवइवयणेण निसिद्धकोलाहलेसु सयललोएसु, भणिया मणोरमा कुंदलयाए"वच्छे! उवरिधरिय- सियायवत्तो, उभयपासनिवडंत चारुचामरो, निरुवम-सोहग्गाइगुणगणालंकिओ, कयविग्गहसंगहो चेव रईवल्लहो, सयल - मलयसामिओ सिरिसेणो नाम एस नराहिवो । जइ रोयइ तो वरेसु एयं । " मणोरमाए भणियं"दिट्ठो एसो ।" अण्णं दंसेहिं । कुंदलयाए भणियं “ एस पुण सोमो व्व नियदंसणामयमयणामय-निव्ववियसयलजीवलोगो, सिवि व्व सरणागयवच्छलो, कण्णो व अखंडियचाओ, सामो नाम मगहाहिव-नंदणो।" तीए भणियं - " एत्थ वि न रमइ मे दिट्ठी । “थेवं गंतूण भणियं कुंदलयाए " एस पुण निय-जस - भरिय-सयल - महीमंडलो नियपोरुसगुणावज्जियाखंडलो कुरुजणवयाहिवसच्चसंधरायनंदणो अमरसेणो नाम कुमारो ।" तीए भणियं “ पुरओ दंसेहि।" कुंदलयाए " भणियं -" इमो पुण अंगा-वंगा - वच्छा- कुच्छा-पमुहजणवयसामिणो सयलगुणगणोववेया अरिंदम कलिंदम-सत्तुंजय सोणसोणमुहमाइया पहाणमहीनाहनंदणा एयाण मज्झे “वरेसु जो ते रोयइ ।" मणोरमाए भणियं अम्मो ! णिव्विण्णा विय लक्खीयसि ।" तीए भणियं “ सुट्ठनायं वच्छाए। “मणोरमाए भणियं " किं कारणं ?" तीए भणियं- "जओ दुप्पूरा ते रुई ।" तीए भणियं "अंब ! दंसिया तए रामाणो । न किंपि एयाण दूसणं । Jain Education International 2010_04 J For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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