Book Title: Manorama Kaha
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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२७४
मणोरमा-कहा
आयहिय-परिण्णा भाव-संवरो नव-नवो अ संवेगो। निक्कंपया तवो निज्जरा य परदेसियत्तं च ॥२७१।। 'आयहिथमजाणतो अयि निवित्तीय हियपवित्ती य । नाणेण सुणइ जम्हा [आयहियं] नाणं पढेयव्वं ॥२७२॥ नाणेण सवभावा नज्जते जे जहिं जिणक्खाया । नाणी चरित्तजुत्तो भावेण उ संवरो होइ ।।२७३।। जह जह सूयमोगाहइ अइसयरसपसरसंजयमपुव्वं । तह तह पल्लाइ मणी नवनवसंवेगसद्धाए ।।२७४।। सज्झायं जाणंतो पंचिंदियसंवुडो तिगत्तो य । हवइ हु एगग्गमणो विणएण समाहिओ साहू ॥२७५।। बारसविहम्मि वि तवे सब्भितरवाहिरे कुसलदिठे । न वि अत्थि न वि अ होही सज्झायसमं तबोकम्मं ।। तम्हा नाणायत्तो दंसणतवनियमसंजमे ठिच्चा । विहरइ विसुज्झमाणो आरिय देसम्मि सो य इमो॥२७७।। मागहकोसंबीया थूणाविसओं कुणालविसओ य। मज्झे इमाण आरियखेत्तं व विहारभूमी य ॥२७८।। चवणेसु जम्मणेसुं निक्खमणेसुं करिति महिमाओ। भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया देवा ॥२७९।। उप्पण्णे नाणवरे तम्मि अणंते पहीणकम्माणो। तो उवदिसंति धम्म जगजीवहियाय तित्थयरा ।२८०।। लोगच्छेरयभूयं ओवयणं निवयणं च सव्वत्तो। निव्वाणगमणकाले जिणाण देवाइ कोरंति ।।२८।। तित्थयरपंचकल्लाणएहिं कल्ला.णकरणदच्छे-हिं । जीवाणारियखेत्तं सिरोमणि सयलखेत्ताण ।।२८२।। दस चोद्दसपुव्वधरा केवलिगो गाणाहरा महिड्ढिया । सा इसयलद्धिकलिया अण्णे विय मुणिवरा एत्थ ।। समणगुणविउत्थजणो सुलहो उवही सतंतमविरुद्धो । आरियविसयम्मि गुणा नाण-चरण-गच्छवुढ्डी य ।। एत्थ किर सन्नि-सावय जाणंति अभिग्गहा सुविहियाणं । तेण विहारो आरियखित्तम्मि जिणेहणुण्णाओ ।। देहोवहीण नासो तेण य सावय पउलूमच्छेहिं । तहिं चिय अणारिए तेण सो तहिं पडिसिद्धो ।।२८६।। अज्जवि तुमं अगीओ आरियखेत्ते वि विहरण अजोग्गो । सपरस्सुवयारं कहं काहिसि उज्जमंतो वि ।।२८७।। जह ण्हाउत्तिण्ण गओ बहुययर रेणुयं छुहइ अंगे । सुठू वि उज्जममाणो तह अण्णाणी मलं चिणइ ॥२८८।। आयहियमजाणंतो मुज्झइ. मुढो समायरइ कम्मं । कम्मेण तेण जंतू पडेइ भवसागरमणंतं ।।२८९।। वारिज्जंतो विरमसि विरमसु ता नत्थि जोग्मया तुज्झ । मा नासेहिसि दुण्णि वि अप्पाणं चेव गच्छं च ।।२९०।। सोऊण सूरिवयणं कोवानल-धगधगंतहियएण । खंडिय-विणएण मए पयंपिअं चत्त-लज्जेण ॥२९१।। कलिकाल-कलुसिए तिहुयणम्मि दोसेहि विम्हओ को णु । जाइ वि तत्थ गुणो गल्याण मई तहिं रमइ ।।२९२।। एयं पि विउस-वयणं वितहं संपाइयं भयंतेहिं । एगंतेणेव ममं सहसा संदूसयंतेहिं ।।२९३।। सूरीहिं वि सो भणिओ रोसं चइऊण पिवसु परमरसं। उभयभवेसु वि जइ भे कज्जं कल्लाणमालाए ।।२९४।। सिझंति सयलकज्जाइं तस्स पुरिसस्स अत्थसाराई। रोसो सुरंग-धूलि व्व- जस्स न हु पायड़ो होइ ।।२९५।। जं कज्जमुवसमपरो साहइ कुद्धो न तं पसाहेइ । कज्जस्स साहणी जं पण्णा कुद्धस्स सा कत्तो ॥२९६।। भणियं च--- सामण्णमणुचरंतस्स कसाया जस्स उक्कडा होति । मण्णामि उच्छु-पु-फं व निष्फलं तस्स सामण्णं ।।२९७।। जं अज्जियं चरित्तं देसूणाए वि पुवकोडीए । तं पि कसाइयमेत्तो हारेइ नरो मुहुत्तेण ।।२९८।। रागेण व दोसण व न मए तुह सारणा कया । एवं एसा जिणाण आणा जं सीसा सारियव्व त्ति ।।२९९।। भणियं च भगवयाआयरिओ केरिसओ इह लोए केरिसो य परलोगे । इह लोए असारणिओ परलोए फुडं भणंतो उ ॥३०॥ १. आयहियं जाणतो अहियनिवत्तीए हियवित्तोष । हाइ जतो सो तम्हा आयहियं आगमेयव्वं ॥ बृ० क० ११६४ ।
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