Book Title: Manorama Kaha
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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तइय अवसरे भाणुमइकहाए बिइयगुणव्वए नमोक्कारमाहय्यं
२८३ आणंदनिब्भराए भाणुमईए ससंभमं गंतुं । विणएण वंदिया सा महत्तरा जाय सद्धाए ॥३७५।। अण्णाओ वि समणीओ जहक्कम वंदिऊण भाणुमई । उचियासणे निसण्णा भत्तिभरुल्लसिय-रोमंचा ॥ संभासिऊण कोमलवयणेण महत्तरा दयासारं । धम्म जिणपण्णत्तं तीए कहिउं समाढत्ता ॥३७७॥ भद्द ! भीमभवण्णवगयाण नियकम्मलहरिनिहयाण । दुक्खेण जायइ जय-जियाण जिणधम्मपडिवत्ती ।। एमाइ-धम्मकहगं कुणमाणीए महत्तराए । तहिं वाहाविजनयणाए सविसायं जपियं तीए ॥३७९।। भगवइ एगा दुहिया मह जाया कहवि दिव्ब जोएण । संपत्तजोवणा सा वि अवहडा हय-कयंतेण ॥३८०।। एगमणिट्ठा बीयं दुहिआ-दुहेण दुहिया हं। दुक्खोवसमोवायं मह किं पि कहेसु पसिऊण ।।३८१।। भणियं पवत्तिगीए धूया विसए न चेव कायवो । सोगो जमेस मच्चू सामण्णो सयलजीवाण ॥३८२।। जओ-- अइगरुयरो गज्जतो जंतु-तिले काल-तेल्लिओ निउणो। नियपुवकम्मनिठुरलट्ठीए पीलए निच्चं ।। धी ! संसार-सहावो उबइसइ जणो परस्स वसणम्मि । नियवसणे पुण सोच्चिय रुयइ सकलुणं रुयावितो॥ भवियन्वयावसेणं जं जह भव्वं तहेव तं होइ । न य विलविएण जायइ को वि गुणो किंतु दुह-वुढ्डी । जण्ण वि साहइ कज्ज किज्जतं किंतु जणइ उवहासं । कह तं सोयं गंभीर-धीर-हियया अणुळंति ।।३८६।। ता भद्दे ! मोत्तूणं दुहिया-दुक्ख करेसु जिणधम्मं । जेणण्णभवे वि तुमं मोह-पिसाओ न विद्दवइ ।।३८७।। किं चेसो तिक्कालं पइदियहं परमभत्तिजुत्ताए । सरियव्बो आह]त्तरसयपरिमाणो नमोकारो. ॥३८८।।
भाणुमईए भणियं-एवं करेमि । गाहिया जिणनमोक्कारं । वंदिऊण महत्तरं गया। तहेव सुमरइ नमोक्कारं । जाया गोरवठाणं दइयस्स।
अण्णम्मि दिणे वियसियमाणसा समागया पवत्तिणि समीवे । वंदिऊण सहरिसं जंपियमणाए-"भयवइ ! नमोक्कारमाहप्पेण जायाहं पिया पिययमस्स।" महत्तराए भणियं-"भद्दे ! तुच्छमेयं फलं । एस णं अरिहाइ-पंचपरमपुरिसनमोक्कारो भावसारं सया सरिज्जमाणो कारणं सारीरमाणसाणेगदुक्खसंखयस्स, पवेस-दुवारं सयलसुह-समिद्धीणं अवंझहेऊकल्लाणपरंपराए, सरणं संसारसरणरणंगणगयाण, नित्थारगो दव्वाइ-चउव्विहावईए, पयंडगायंडा य वि किलेसावासहिमगिरिसिहराणं, पक्खिराया दुरियमहोरगाणं, वराहदाढा दालिद्दकंदस्स, वज्जनिवाओ कम्ममहासेलस्स, उवलंभ-चिंधं चिरकाला सेविज्जंत-धम्मपरिणईए, कुसुमोग्गमो सुहठाणाउयबंध-तरुणो। अण्णं च-जहा-विहिय-समाराहणस्स सव्वकामियमहामंतस्स पंचणमोक्कारस्स सबहमाणसुमरणाओ नाहि भवंति, भूयपिसाया न छलंति, साइणीओ न भेसंति विभीसियाओ, नाणिटुकरा दुद्रुग्गहा, न दुक्खादाईणि दुरिक्खाणि, न पभवंति खग्गाभिघाया, न विहुरंति वाहिओ, न फलंति कुसुमिणदसणाणि, न सकज्जकरा अवसउणगणा, न किंचि काउं समत्था खुद्दमंततंता[इ]णो। तहा समुद्दो वि गोपयं, विसमगिरि-सरिया-पवाहो वि सम-महीयलं, जलणो वि पंकयपुंजो, सप्पो वि जिण्णरज्जुसमो, विसंपि अमयं सत्तुणो वि मित्ताणि, भीमाडवी वि नियघरंगणं, चोरो वि अलुटगो, करी वि कोलाणयं, सीहो वि गोमाउमेत्तं, दूरट्टियं पि करयल-निलीण-मिव सयल-समीहियं ति । अओ चेव--
सुयंतमसुयंतसमुट्ठितखलंत-पडतेहिं देवेहिं दाणवेहि सिद्धेहिं गंधव्वेहिं विज्जाहरेहि य सव्वेसु सुरालएसु, सव्वेसु भवणवइ-निवासेसु, सव्वेसु भरहेसु, सव्वेसु एरवएसु, सव्वेसु महाविदेहेसु, सब्वेसु विजएसु, सव्वेसु गिरिसु, सन्वेसु पसत्थपएसेसु, सया वि सबहुमाणं पढिज्जइ । सया वि सबहुमाणोवयारं गुणिज्जइ । सया वि सबहुमाणोवयारं वक्खाणिज्जइ सया वि सबहुमागोवयारं झाइज्जइ। अवियधण्णाण मणो-भवणे, सद्धाबहुमाणवड्ढिनेहिल्लो । मिच्छत्त-तिमिर-हरणो वियरइ नवकारवरदीवो । जाण मणवणणिगुंजे रमइ णमोक्कारकेसरिकिसोरो । ताणं अणिट्ठदोग्घट्ट-थट्टघडणा [न नियडे वि] ।
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