Book Title: Manorama Kaha
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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३०२
मणोरमा-कहा
तहेव कयं पुरिसेहिं। पच्छा पुच्छाविया ते सेट्ठीहि-"किमेएहि विणासियं?" तेहिं भणियं--"दसदीणार-सहस्साणि हारिऊण मग्गिज्जंता “अज्जं दलयामो कल्लं देमो' इच्चाइवयणवित्थरेण ठिया कइवयदिणाणि । अज्ज पुण परिकुविएण भणियं, सहिएण-"अलं कालविलंबेण । दीणारे वा अज्जं देंतु पाणे वा।" सहियवयण-सवण-संजाय-मरण-भया नासिऊण एत्थतं ।प]विट्ठा। ता समप्पेह एए जइ भे [हव]इ कल्लाणेण कज्जं ।" तओ साहम्मिय-वच्छलं गुणकरं ति मण्णमाणेहि दिण्णा दसवि दीणारसहस्सा जूइयराण पुरिसदत्त-करेणुदत्तेहि । गया जूइयरा । इयरे य अप्पणा सद्धि मज्जाविया भोयाविया य दो वि ते सावय-सुया। विदिण्ण-वत्थ-जुयला सुहासणत्था पुच्छिया पुरिसदत्तेण"--"का जाई, कि कुलं, अलंकरियमजहि ?" भणियमहि-- पणट्ठ-सील-समायाराणं नियकुल-कलंक-भूयाण । जाइ-कुसुम-किमियाणं व किं कुणउ जाइ अम्हाण ।।५६६।।
___ "तह वि तुम्ह साहिज्जइ।" बाहाजल-भरियलोयणेहिं खलंतक्खरं जंपियं अणेहि--"अज्ज। वाणियगकुलसंभूया कम्मेण चंडाला, सावयकुलफंसणा, उभयलोग-विरुद्धसेविणो, विस-पायव व्व अवयार-निमित्तं वढिया जणणि-जणयाण सेसलोयाण, धवल-विमलाभिहाणा परमसम्मद्दिट्ठि-सेठ्ठि अंगया । वारिज्जंता वि ताएण किलिट्ठ-कम्मोदएण अंगीकयजय-वेस-वसणा विविहोवाएहि घररित्थं विणासिउमाढता। सासंति जणणि-जणयाणि । वियरंति धम्मोवएसं साहुणो वि । लक्खारागो व्व कप्पासे न लग्गइ अम्हाण माणसे उवएसो। तओ पिउप्पमुहाणि इमिणा चेव दुक्खेण सुमिरणसेसाणि जायाणि । जओ-- सयल-जण-नयण-कडुयं नित्थामं दिट्ठिवायपब्भट्ठ । नियतणयं धूभं पेच्छिऊण छारं गओ जनणो।।५६७।।
तहा वि न विरमइ अम्हाण इमं वसणं । हट्ट-घर-विहारा वि [हारावि ]या। दिसो दिसं गओ परियणो। अम्हे पुण सुण्णदेउलेसु वसामो। परममणि व्व कयाइ छट्ठाओ कयाइ अट्ठमाओ भुंजामो तह वि वसणं न मुयामो । किं बहुणा सच्चवियमम्मेहि वयणमेयं
नह घट्टा कर पंडुरा, सज्जण दूरी हुय । सुण्णा देउलसेवियइ, तुज्झ पसायइ जय ! ।।५६८।।
एवं अप्पाणं विडंबयंताण वोलीणो कोइ कालो । अण्णदिणे साहसमवलंबिऊण सहिय-समक्खं दोहिं वि उड्डियं दीणारदससहस्साण सहिएण भणियं-“परिचयह एयं । जइ दीणारा न देह तो भे जीयं गिण्हामि ।" पडिवण्णमम्हेहिं । रमाविया हारियं च। धराविया सहिएण। मग्गिया 'देमो तिं एवं भणंतेहिं गमिया कइवि वासरा। अज्ज पुण पणट्ठधण-धण्णाणेण माराविउमारद्धा। लद्धंतरा नासिऊण तुम्ह सरणमागया।" पुरिसदत्तेण भणियं--"सोहणं कयं । संपयं किं कायव्वं ?" तेहिं भणियं-"जं भणह ।" पुरिसदत्तेण भणियं--"परिचयह एवं इहलोगे वि सयलाणत्थ निबंधणं परलोए दुग्गइकारणं वसणं।" तेहिं भणियं-"परिचत्तमेव ।" तओ एगो अत्तणा संगहिओ। बीओ करेणदत्तस्स समप्पिओ। बीयदियहे दिण्णं पयाणयं । सुह-सुहेण पवहिऊण परिमिय-वासरेहिं पत्ता कुबेरदिसावहभाल-तिलय-तुल्लं कुबेरसुंदरं नाम नयरं। ठिया तत्थ । संचालिओ ववहारो। विढत्तं भूरि-दविण-जायं । गहियं पडिभंडं । कया आगमण-सामग्गी । कुसलेण समागया सट्ठाणं । कयं वद्धावणयं । मिलिया सुहिसयण-वग्गा । सम्माणिया पुप्फतंबोलाईहिं । गहिऊण पहाणपाहुडं दिट्ठो राया पुरिसदत्त-करेणुदत्तेहिं । विणत्तो लद्धावसरेहि--“देव ! निय-दव्ववएण धम्मठाणं कि पि करिस्सामो भूमिखंड-पयाणेण पसायं करेउ महाराओ।" निउत्तो मंती राइणा । दसिया तेण नयर-मज्झे । पसत्थवासरे, समाहूया सुत्तहारा । पारद्धं परिणय-जलदलाइणा कम्मकरपच्चासण्णजणमपीडभयं तेहि कम्मतरं । दिज्जइ भणियसमहियं वित्तियगाण वेयणं । बिच्चयंति अद्धमद्धेण दविणजायं परिसदत्त-करेणुदत्ता । करिति कम्मंतरे चितणं धवलविमला। थेव कालेण चेव निम्माया पोसह सा (ला) य केरिसीसुसिलिट्ठ-लट्ठ-कठेहि रेहिरा सरल-सार-बहुथंभा। ठाण-ट्ठाण निवेसियवरघोडुल्लय-समाइण्णा ।।५६९।। पवरोवरगसणाहा,निबिड-कवाडा निवाय[गुण कलिया] विमल-विसाल-मणोहर-वर-मंडव-मंडिया रम्मा।५७०।
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