Book Title: Manorama Kaha
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 307
________________ २८० मणोरमा-कहा वालणे न वहइ काओ गमणे पुण नियम-खंडणा होइ । ता हियय ! कि पवज्जसि संकडमेयं समावडियं ।। उम्मलिऊण सीलालाणं हिंडइ विसंठुलो धणियं । भंजतो धम्मवणं मज्झ मणं मत्तहत्थि व्व ।।३२८।। लज्जा-कूलाभिमाणो जाई-विणओ गुरूवएसो य । सयदसणे वि सव्वं तीए हयासाए पदसियं ।।३२९॥ वयणस्स ससी दासो नयणाणं कुवलयाणि दीणाणि । दुव्वण्णं हि सुवण्णं तीसे अंगस्स कंतीए ।।३३०॥ अमयमई वि हु बाला जालाजलणस्स सा फुड जाया । कह दहइ अण्णहा मे सव्वंग सुमरणेणा वि ।।३३१।। विसमसरनिसियसरपसरसल्लियंगस्स दुक्खतवियस्स । अणुहब-सिद्धं जायं वियड्ढ-वयणं इमं मज्झ ।।३३२।। ह। हियय ! मडहसरिया-जलरयवुब्भंत-दीह-दारु व्व । ठाणट्ठाणे च्चिय लग्गमाण केणावि डज्झिहसि ।। नियमविराहणजणियं दुक्खं जम्मतरे न उण इण्हि । तविरहजणियदुक्खं इण्हि पि ह दुस्सहं ताव ।। एवं विचितिय भणिओ सो गंगदत्तण--“गम्मउ कलहदीवे लज्जापयं अ[ कय कज्जाण नियत्तणं।" रयणसेहरेण भणियं--"वयंस! एवं भणमाणो वयणेण दिसापरिमाणवयं साइयारं करेसि।" गंगदत्तण भणियं--"जइ एवं तमं वयमालिण्णभीरुओ तो नियत्ताहि । मए पुण अवस्समेव गंतव्वं ।" नाऊण तस्स निच्छयं पडिनियत्तो रयणसेहरो। चलिओ कलहाभिमुहं गंगदत्तो । तइय-दिणे वहंतेसु जाणवत्तेसु दिट्ठो ताल-तरु-दीह-निम्मंस (विसमसंठ) वियजंघाजुयलो, पढम-पाउस-सजल-जलहरंजण-मसी-मूसा-गवल-कालग-सरीरो, कत्तिया कराला सिलिट्ठिसंठियबाहुदंड तइवियाडंबरो, मुहकुहराइक्कंतफालसमाण-दसण-लंबोट्ठसंपुडो, खज्जोयदित्तलोयणो, निल्लालियग्ग-जमल-जुयलजीहाकराल-दंसणो, चुल्ली-विवर-वियडनासो, पलयकालघण-धणणीसणेहिं पूरयंतो नहयलं, कत्थइ किलिकिलंतो, कत्थइ फेक्कारितो “अरे ! निरवराह-वेरिय-पुरिसाहम-णंदण ! सोहं चंडालो जो 'अचोरो वि चोरों' त्ति भणिऊण राउले तए संभालिओ । राइणा दुक्खमारेण माराविओ [विराओ] दिट्ठो कहं जीवंतो छ?[हि]सि? " इच्चाइ भणंतो वेयालो ठिओ पवहणस्स पुरओ। संखुद्धा सव्वे वि जाणवत्तलोया। भयभीएण समच्छाहिओ गंगदत्तेण निज्जामओ। तेण वि तोरविया कण्णकुच्छिधारा । _____एत्यंतरे जायं अकाल[ मेह ]दुद्दिणं । झलझलिया नहयले विज्जुलिया । वरिसिउमारद्धं रुहिरधाराहि नहयलं । मत्तो समुद्दो। कुविय-कयंत-सरिच्छो जालानियरं मुहेण मुच्चंतो। तज्जितो सयलजणं वेयालो नयले भमइ ।।३३५।। पवयसिहरसमुण्णयपवणपणोल्लिज्जमाणलहरीओ। गंतूणुढ्डं पोयस्स बीय-पासम्मि निवडंति ।।३३६।। हा! ताय-ताय हा ! माय-माय हा ! भाय भाय पभणंता । भयसंभंता लोया निज्जामयसरणमल्लीणा ॥३३७॥ तेण वि भणियं एरिसट्ठाणे उप्पाइयं इमं जायं । जस्स न सक्का काउं परियारं किं वियारेण ॥३३८।। सोऊण तस्स वयणं विमुक्कहत्थेहिं धीवरनरहिं । पोक्करियं भो लोया ! गिण्हह संतरण-फलयाई ॥३३९।। सरसरसरस्स मुंचंति नंगरा मिलिय नावियनरेहिं । कूवय-थंभा तिरियं झत्ति विहिज्जति पुरिसेहि ॥३४०।। नयलपडत-अइरोद्द-रुहिर-धारानिवारणट्ठाए । छाइज्जइ नावा सियवडेहि घणसुत्तमइएहिं ।।३४१।। रे ! लेह, लेह, धावह, रुंभह छिद्दाइ जाणवत्तस्स । उल्लिचिऊण छड्डेह जं पविट्ठ [ जलं ] मज्झे ।।३४२।। मा मा कुणह पमायं तेल्लं तावेह लेह तह अग्गि। गरुयविडंबियवयणो गसिउ मणो मच्छओ एइ ।।३४३।। एमाइ संलवंता भयभीया थरहरस्स कंपंता। चिठंति जाव लोया ताव नहे उद्रिया व या ।।३४४।। जइ वच्चह पायालं सरणं वा सुरबई समल्लियह । कुणह उवाय-सहस्सं तह वि इयाणि न भे मोक्खो ॥ . इय सोउं संखुद्दो उढ्डमुहं जाव पेच्छए लोओ । ता नियइ नहे कत्थइ घणाघणा काल-निलाभा ॥३४६।। कत्थइ लोहिय-हालिद्द-सुक्किला झलझलंति विज्जुलिया । संखुहिय-जलहिजला गज्जंतागास-सद्देण ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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