Book Title: Manorama Kaha
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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मणोरमा-कहा
कुंदेण भणियं-- मुद्धोसि तुम बालय ! धम्मगहिल्लोसि नीरसो धणियं । जडजड हारो व्व जओ घोडा घोडं ति झाएसि ।१५१। जओ-वियक्खणा वि एवं वयंतिते धण्णा जाण कए भयभीउत्तट्ठ-हरिण-नयणीओ । ऊसरुसुंभंति रूयंति गरुयदुक्खेण सहिपुरओ ।।१५२।। ते धण्णा अवरभुयंगमेहि पारद्ध-सुरय-कालम्मि । जाणुत्तंगपओहराण हियए खुडुक्कति ॥१५३।। ते धण्णा सरस-मणाल-सत्थरे जाण दीहरच्छीओ। उत्थल्ल-चलण-पल्लत्थणाइं विरहम्मि बुवंति ।।१५४।। ते धण्णा जे मयणग्गि-पसर-तण्हाए मउलियच्छीहिं । आलिंगिऊण सरसं टस त्ति सलिलं व पिज्जति ।१५५। ते धण्णा वच्छल-निविड-तुंग-थणएहिं पीण-कढिणेहि । जे पेल्लिऊण गाढं तरुणीहि जे य चेप्पंति ।।१५६।। सा कि जियइ त्ति जणो आयंबिरतरलतारनयणेहि । अणिमिसनयणा बाला न जस्स वयणं पलोएइ ।।१५७।।
मयरं देण भणियं-वयंस ! अलं दुग्गइपह-पाहुडेहि कुसत्थसंवाएहिं । जओइहरा वि हु जलइ च्चिय वम्मह-जलणो जणस्स हिययम्मि । कि पुण कुसत्थपंडिय कुकव्वहविहुमिओ संतो।१५८ । इह भवगहणि भमंतु कह वि पाविवि जिण-सासणु । सचराचरजिय जणणि कप्प दुगईहे नासणु । मण करि पावह परमटाणि दुग्गइ पह-पाहुडि । परकलत्ति आसत्ति मित्त खंचवि मणु बाहुडि ॥१५९।। मरइ कढंत कवल्लिहिं पच्चइ सो पुरिसु । खंडिज्जइ कप्पणि समा...]सरिसु ॥ जो मेल्लवि मणु मोक्कल परदारइं महइ । इहलोइ विविहबंधणमरणई सो लहइ ।।१६० ।। लद्धउ माणुसु जम्मु म निष्फल हारवहि । अज्ज वि किंपि न नट्ठउं अप्पउं सारवहि । जो निय मुहिण पवज्जिवि वय-खंडणु करइ । सो नरु भट्ठ-पइण्णु मरिवि निवडइ नरइ ।।१६१।। वलु जीविउ जोव्वणु असारु अप्पाणु म वंचहि । कुपह-पयट्ट-इंदिय-तुरंग मण-वग्गइ खंचहि ॥ निम्मलि जिणवर-धम्मि रम्मि अप्पउं परिठावहि । सुर-सुंदरि-मुह-कमलि जेण भसलत्तणु पावहि ॥१६२।। भणियं च
जीव म वहहु म अलियउं जपहु अप्पउ म म अप्पहु कंदप्पहु ।'
मरहु म हरउ म करहु परिग्गहु एहु मग्गु सग्गहु अपवग्गहु ।।१६३।। वयपरिपालणसोक्खु परोक्खु कु सद्दहइ परकलत्तसंगमसुंह सहिउ सग्ग इहई । भणइ कुंदु मयरंद म सिक्खवि मइं अबुह धम्ममिसिण पहलग्गी का वि अविज्ज तुह ।।१६४।। तओ भणिओ सो मयरंदेणसयल-सत्थ-पडिसिद्धिहि बुहयण-निदियहि । सत्तवंत नरवंतिहि कुवुरिस सेवियहि । परदारिहिं दुह-दारिहि रमियहि नत्थि सुहं । अप्पणि खंधि कुहाडि म मूढा वाहि तुहुं ॥१६५।। जो सेवइ परदारु दारु दोग्गइ पुरह । सो वेसप्पिउ पुरिसु सरिसु हय मंडलह । इह लोइ वि छिक्कारिउ हा हा रव-हयउ । लहइ निरंतर-तिक्ख-दुक्ख दोगइ गयउ ।।१६६।। माय भइणि सम मण्णहि सव्वइ परह धण । न रणि वि करहिं कुकम्मु स सुपुरिस सुद्धमण। जे पुण तं पि पसंसहि तेत्थु वि रइ करहिं । ते संसार समुह कया वि स नित्थरहि ।।१६७।। नियय दोस दोस त्ति पवज्जइ जो पुरिसु । छड्डुवि दोस-कम्मइं स जायइ मुणिसरिसु।
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