Book Title: Manorama Kaha
Author(s): Vardhmansuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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२६८
मणोरमा-कहा
तओ चुओ समाणो सुकुले लहिऊण मणुयत्तणं, भुत्तभोगो पडिवज्जिऊण सव्वण्णुसासणे समणत्तं, [पाविऊण ] केवलनाणं, पडिवज्जिऊण सेलेसि, सिज्झिस्सइ । इहलोगे वि पसंसं लहंति परदारवज्जिणो पुरिसा। परलोए सुगइपरंपराए पाविति निव्वाणं ॥१७१।। परदार-रया-पुरिसा लहिऊण विडंबणं इह भवे वि । अण्ण भवे दुह-दुहिया दुग्गइ-पह-पंथिया होति ।।१७२।।
पंचमपरिग्गपरिमाणवयगहणखंडणपरिपालणाफलं पदंसिज्जइ-- ___ अत्थि इहेव जम्बूद्दीवे दीवे भारहेवासे विसप्पंत-विवेयगुण-रयणाहरण-मंडिय-विग्गहासम-सत्तनर-विसर-सेविओ मोक्खतरु-[अ]वंझबीयकप्प-सम्मत्ताइ-गुणसंपायणमत्थ-धम्मदेसणा-निरय-मुणिजण-पयपंकयालंकिओ गामागर-पुरवर निवासि-सुंदरसुंदरी-वारवज्जिर-तारनेउराराव-रंजिय-रायहंस-मंडलो वच्छा नाम जणवओ।
तम्मिय सयल-विसय-पहाणं तिहुयण-सिरिसंसेवियं महीमंडणं नाम नयरं। तत्थ य अंजणगिरि-सिहरसमाण--थिर-थोरकरारि-करिकुंभत्थल-वियारणुच्छलिय--धवल-मुत्ताहलुक्केर-दंतुरिय-कराल-करवाल-धारानिसण्ण-रायलच्छी समालिगिय-विग्गहो नरवाहणो नाम राया । नियसुंदेर-विणिज्जिय-सुरसुंदरी-संदोहाचंदलेह व्व बंधुयण-कुमुयसंडाणंदकारणं चंदलेहा नाम तस्स देवी। तीए सह विसयसुहमणुहवंतस्स राइणो जाओ पुत्तो । उचिय समए पइट्ठावियं नाम नरचंदो। अट्ट वारिसिओ समप्पिओ लेहायरिअस्स । थेव कालेण जाओ असेसकला-पारगो। मित्तो य तस्स जिणधम्मविसारओ अरिहचंदसेट्टिपुत्तो जिणगुत्तो [नाम-अण्णया ]. मरण-पज्जावसाणयाए जीवलोगस्स उवरया चंदलेहा । ठविया तम्मि ठाणे अण्णा देवी। समुप्पण्णो तीए वि पुत्तो। तओ सा नरचंदं पइ विप्पयारेइ रायाणं । सो वि कण्णविस-वियार-विण-विवेओ अवियारिऊण परमत्थं वियलिय-सिणेहो सामण्ण-जणं व पेक्खइ नरचंदकुमारं ।।
तओ विसायमावण्णेण चिंतियं कुमारेण-अवहरिया ताव मे जणणी कयंतेण । ताओ वि सपरियणो मं पइ विपरिणओ [विव लक्खियइ] अहवा तायस्स न दोसो। विवरीय विहिवसेणं नरस्स सव्वं पि होइ विवरीयं । माया वि होइ वग्घी अप्पो सप्पो फुडं एयं ।।१७३।।
ता किमिहट्ठिएण? वच्चामि देसंतरं। साहिओ निययाभिप्पाओ जिणगुत्तस्स । बहुमण्णिओ तेण। भणिओ य नरचंदो-“जा तुज्झ गई मज्झ वि सा चेव । जओसो अत्थो जो हत्थे तं मित्तं जं निरंतरं वसणे । [सो] धम्मो जत्थ दया तं विण्णाणं जहिं विरई ॥१७४।।
[तओ] अलक्खिया परियणेण निग्गया दो वि रयणीए। चलिया उत्तराभिमुहं । कमेण वहता पत्ता सुहसंवासं नामनयरं । वीसमिया नयरासण्ण-सरोवरपालिसंठिय-सहयार-पायव-हे?ओ।
एत्यंतरे तलायतित्थे होऊण ताडाविया भेरी एगेण ईसर-वणिय-सुएण । मिलिया तत्थ भेरी-भंकार-समकालमेव बहवे कप्पडिअतडियादओ । उच्छलिओ ताण कोलाहलो। सो वि सावणघणो व्व निरंतरकणयसलिल-धाराहि वरिसिउमारद्धो। जण-समुदायं दळूण संजाय-कोऊहलो समं जिणगुत्तेण समागओ तत्थ नरचंदकुमारो । खणंतरेणं संपण्णमणोरहा आसी । पयाण-पुरस्सरं गया नियट्ठाणं । नरचंदेण भणियं-"वयंस ! जिणगुत्त ! कयपुण्णो को त्रि इमो सुलद्धजम्मो जयम्मि सुपसिद्धो। जस्स न मणं न दाहिणहत्थो दितस्स संकुडइ ।।१७५।।
___ता धण्णो को वि एस महाणुभावो। जो एवं अत्थिजणाऊरणं कुणतो नियकुलं पयासेइ, करिकण्णचलं लच्छिं सहलत्तणं पावेइ, उभयलोयसुहावहं सुहकायं समज्जिणेइ अम्हारिसा पुण संखाऊरण पुरिसा उभयलोगविहलजीविया । न धणं न य गुणा । जओ-- एगे धणेण गरुया अण्णे य गुणेहिं हुंति गारविया। धण गुण रहियाण पुणो नराण को आयरं कुणइ ॥१७६।।
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