Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व (ग) वर्तमान विद्वानों के शोधपूर्व लेख एवं ग्रन्थों की भूमिकाओं में कवि का
जीवन-परिचय।
प्रथम प्रकार की सामग्री के अन्तर्गत समयसुन्दर-लिखित रचनाओं से उनका जन्म-स्थान, गुरु, गुरु-वंश-परम्परा, उपाधि, प्रवास, जीवन-संघर्ष, क्रियोद्धार आदि के सम्बन्ध में कई बातें ज्ञात होती हैं। उन्होंने अपने ग्रन्थों में ग्रन्थ के आरम्भ एवं समाप्ति का समय, काव्य-रचना की प्रेरणा, साहित्य-सर्जन, समकालीन परिस्थिति, दुष्काल इत्यादि घटनाओं की जानकारी भी प्रदान की है। साथ ही साथ इन ग्रन्थों से उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व तथा कुछ स्वभावगत विशेषताओं का भी परिचय उपलब्ध होता
परवर्ती जैन कवियों द्वारा प्रणीत ग्रन्थों में भी समयसुन्दर के जीवन-वृत के विषय में कुछ महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं । अनेक परवर्ती कवियों ने अपनी कृतियों में महोपाध्याय समयसुन्दर का स्मरण श्रद्धापूर्वक किया है। इनमें हिन्दी के अतिरिक्त संस्कृत के कवि भी सम्मिलित हैं। कविराज ऋषभदास, वादीन्द्र हर्षनन्दन, कवि राजसोम, कवि देवीदास, पंडित विनयचन्द्र एवं उपाध्याय लब्धिमुनि ने अपनी रचनाओं में समयसुन्दर का उल्लेख किया है। समयसुन्दर की प्रतिभा को प्रकाशित करनेवाले कुछ पद्य द्रष्टव्य हैं(क) ऋषभदास :
सुसाधु हंस समयोसुरचन्द, शीतल वचन जिम शारद चन्द।
ए कवि मोटा, बुद्धि विशाल, ते आगलि हूँ मूरख बाल ॥ (ख) हर्षनन्दन :
तच्छिष्य मुख्यदक्षाः विद्वद्वर समयसुन्दराह्वयः। कलिकाल-कालिदासाः, गीतार्था ये उपाध्याया॥ प्राग्वाट शुद्धवंशाः, षड्भाषागीतिकाव्यकर्तारः।
सिद्धान्त-काव्य-टीका-करणादज्ञान-हर्तारः॥२ (ग) राजसोम:
नव खंड में जसु नाम पंडित गिरुआ हो, तर्क व्याकरण भण्या। अर्थ किया अभिराम, पद एकणरा हो, आठ लाख आकरा ।। साधु बड़ो ए महन्त अकबर शाहे हो, वखाणीयो। समयसुन्दर भाग्यवंत पातिशाह तूठे हो, थापलि इम कह्यो ॥३
१. कुमारपाल-रास (रचना-सं. १६७०) २. उत्तराध्ययन-टीका, प्रशस्ति (सं. १७११) ३. नलदवदन्ती-रास, परिशिष्ट ई, पृष्ठ १३२
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